Paryawaran ka Asantulan Par annuched 120 words
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मनुष्य की प्रकृति पर निर्भरता आदि काल से ही चली आ रही है । इसीलिए विश्व की प्रत्येक सभ्यता में प्रकृति की पूजा का प्रावधान है । प्राचीन भारतीय समाज भी प्रकृति के प्रति बहुत ही जागरूक था । वैदिक काल में प्रकृति के विभिन्न अंगों भूमि, पर्वत, वृक्ष, नदी, जीव-जन्तु आदि की पूजा की जाती थी ।
प्रकृति के प्रति मनुष्य की इस असीम श्रद्धा के कारण पर्यावरण स्वतः सुरक्षित था । विकास की अंधी दौड में मनुष्य ने प्रकृति को अत्यधिक नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया । एक सीमा तक प्रकृति उस नुकसान की भरपाई स्वयं कर सकती थी, लेकिन जब उसकी स्वतः पूर्ति की सीमा समाप्त हो गई तो पर्यावरण असंतुलित हो गया ।
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