पसतुत कथेचे सवादरपाने लेखन करा
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पिता की भी याद से पहले खड़ा है।
सघन छाया में बिछी हैं खाट कितनी,
इन जड़ों पर बैठकर मैंने पढ़ा है।
ये गली-गलियार सँकरे और टेढ़े,
जहाँ चर्चे आपसी झगड़े-बखेड़े।
खिलखिलाहट हास्य से भरपूर पनघट,
यह उफनती जिंदगी पागल अखाड़े
उधर वृक्षों से घिरा पोखर सुहाना,
भर दुपहरी नित जहाँ डुबकी लगाना।
आज भी अच्छी तरह हैं याद वे दिन,
काग़ज़ों की किश्तियाँ घंटों चलाना।
और पोखर निकट शिव मंदिर पुराना,
शिखर जिसका आज भी लगता सुहाना
ये नवेली क्यारियाँ, चलते हुए हल,
घिरे बादल, बीज का बोना-बुआना।
भूलने की चीज़ क्या छाँव है!
यह हमारा गाँव, प्यारा गाँव है।
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