पश्चिम की ओर बढ़ते कदम पर २५० से ३०० शब्दों का निबंध
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हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति अपनी परंपरा और आदर्श के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। मगर हमारे देश की सभ्यता को बाहरी सभ्यता नष्ट करने में तुला है।
हमारे देश को जिस कारण से आजादी मिली आज देश के आजाद होने के बाद हम वहीं काम कर रहे जो हमें त्याग करना चाहिए।
पश्चिम की सभ्यता और वहां की पहनावा पहनकर हम खुद को भारतीय कहते हैं मगर वास्तव में भारतीय सभ्यता से हमारा कोई लेना-देना नहीं।
हमें जीन्स पहनना पसंद है मगर साड़ी पहनने से हमें तकलीफ होती है। पहले माता की आंचल की छांव में बच्चे रहते थे। मगर आज पश्चिम के कल्चर के कारण भारतीय मां का आंचल जिन्स और कुर्ती की आड़ में गायब सा हो गया है।
हमारा यह कदम हमें अपने समाज और नियमों से वंचित कर रहा है जो भारत के लिए बहुत हानिकारक है क्योंकि भारतीय से अच्छे तो विदेशी पर्यटक है जो भारत को भारतीयों से ज्यादा समझते हैं और साड़ी में भारत भ्रमण करते हैं।
हमारे देश को जिस कारण से आजादी मिली आज देश के आजाद होने के बाद हम वहीं काम कर रहे जो हमें त्याग करना चाहिए।
पश्चिम की सभ्यता और वहां की पहनावा पहनकर हम खुद को भारतीय कहते हैं मगर वास्तव में भारतीय सभ्यता से हमारा कोई लेना-देना नहीं।
हमें जीन्स पहनना पसंद है मगर साड़ी पहनने से हमें तकलीफ होती है। पहले माता की आंचल की छांव में बच्चे रहते थे। मगर आज पश्चिम के कल्चर के कारण भारतीय मां का आंचल जिन्स और कुर्ती की आड़ में गायब सा हो गया है।
हमारा यह कदम हमें अपने समाज और नियमों से वंचित कर रहा है जो भारत के लिए बहुत हानिकारक है क्योंकि भारतीय से अच्छे तो विदेशी पर्यटक है जो भारत को भारतीयों से ज्यादा समझते हैं और साड़ी में भारत भ्रमण करते हैं।
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