पशुओं में होने वाली विश्व विचारों का वर्णन निम्न बिंदुओं पर कीजिए अन्य नाम कारण एक इन्क्युबेसन अवधि मृत्युदर लक्षण उपचार
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कृषि
पशुपालन
राज्यों में पशुपालन
बिहार में पशुपालन
पशुओं के प्रमुख रोग - रोकथाम एवं उपचार
अवस्था:
खुला
पशुओं के प्रमुख रोग - रोकथाम एवं उपचार
परिचय
मवेशियों के प्रमुख रोग
संक्रमक रोग (छूतही बीमारियाँ)
सामान्य रोग या आम बीमारियाँ
परजीवी जन्य रोग
परिचय
मवेशी या अन्य पशुधन के बीमार हो जाने पर उनका इलाज करने के वनिस्पत उन्हें तंदुरूस्त बनायेRog रखने का इंतजाम करना ज्यादा अच्छा है। कहावत प्रसिद्ध है “समय से पहले चेते किसान”। पशुधन के लिए साफ-सुथरा और हवादार घर – बथान, सन्तुलित खान – पान तथा उचित देख भाल का इंतजाम करने पर उनके रोगग्रस्त होने का खतरा किसी हद तक टल जाता है। रोगों का प्रकोप कमजोर मवेशियों पर ज्यादा होता है। उनकी खुराक ठीक रखने पर उनके भीतर रोगों से बचाव करने की ताकत पैदा हो जाती है। बथान की सफाई परजीवी से फैलने वाले रोगों और छूतही बीमारियों से मवेशियों का रक्षा करती है। सतर्क रहकर पशुधन की देख – भाल करने वाले पशुपालक बीमार पशु को झुंड से अलग कर अन्य पशुओं को बीमार होने से बचा सकते हैं। इसलिए पशुपालकों और किसानों को निम्नांकित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
पशुधन या मवेशी को प्रतिदिन ठीक समय पर भर पेट पौष्टिक चार-दाना दिया जाए। उनकी खुराक में सूखा चारा के साथ हरा चारा खल्ली – दाना और थोड़ा- सा नमक शामिल करना जरूरी है।
साफ बर्तन में ताजा पानी भरकर मवेशी को आवश्यकतानुसार पीने का मौका दें।
मवेशी का बथान साफ और ऊँची जगह पर बनाए। घर इस प्रकार बनाएं कि उसमें सूरज की रौशनी और हवा पहुँचने की पूरी - पूरी गूंजाइश रहे। घर में हर मवेशी के लिए काफी जगह होनी चाहिए।
बथान की नियमित सफाई और समय- समय पर रोगाणुनाशक दवाएँ जैसे फिनाइल या दूसरी दवा के घोल से उसकी धुलाई आवश्यक है।
मवेशियों या दुसरे पशुधन के खिलाने की नाद ऊँची जगह पर गाड़ी जाए। नाद के नीचे कीचड़ नहीं बनने दें।
घर बथान से गोबर और पशु- मूत्र जितना जल्दी हो सके खाद के गड्ढे में हटा देने का इंतजाम किया जाए।
बथान को प्रतिदिन साफ कर कूड़ा – करकट को खाद के गड्ढे में डाल दिया जाए।
मवेशियों को प्रतिदिन टहलने – फिलने का मौका दिया जाए।
मवेशियों के शरीर की सफाई पर पूरा – पूरा ध्यान दिया जाए।
उनके साथ लाड़ – प्यार भरा व्यवाहर किया जाए।
मवेशियों में फैलनेवाले अधिकतर संक्रामक रोग (छूतही बीमारियाँ) एंडेमिक यानी स्थानिक होते हैं। ये बीमारियाँ एक बार जिस स्थान पर जिस समय फैलती है, उसी स्थान पर और उसी समय बार- बार फ़ैला करती है। इसलिए समय से पहले ही मवेशियों को टिका लगवाने का इंतजाम करना जरूरी है। टिका पशुपालन विभाग की ओर से उपलब्ध रहने पर नाम मात्र का शुल्क लगाया जाता है। खुरहा – मुहंपका का टिका प्रत्येक वर्ष पशु स्वास्थ्य रक्षा पखवाड़ा के अंतर्गत मुफ्त लगाया जाता है।
मवेशियों के प्रमुख रोग
मवेशियों के कई तरह के रोग फैलते हैं। मोटे तौर पर इन्हें निमनंकित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है –
क. संक्रामक रोग या छूतही बीमारियाँ।
ख. सामान्य रोग या आम बीमारियाँ।
ग. परजीवी जन्य रोग।
संक्रमक रोग (छूतही बीमारियाँ)
संक्रामक रोग संसर्ग या छूआ – छूत से एक मवेशी से अनेक मवेशी से अनेक मवेशियों में फ़ैल जाते हैं। किसानों को इस बात का अनुभव है कि ये छूतही बीमारियाँ आमतौर पर महामारी का रूप ले लेती है। संक्रामक रोग प्राय: विषाणुओं द्वारा फैलाये जाते हैं, लेकिन अलग – अलग रोग में इनके प्रसार के रास्ते अलग – अलग होते हैं। उदहारणत: खुरहा रोग के विषाणु बीमार पशु की लार से गिरते रहते हैं तथा गौत पानी में घुस कर उसे दूषित बना देते हैं। इस गौत पानी के जरिए अनेक पशु इसके शिकार हो जाते हैं। अन्य संक्रामक रोग के जीवाणु भी गौत पानी मृत के चमड़े या छींक से गिरने वाले पानी के द्वारा एक पशु से अनेक पशुओं को रोग ग्रस्त बनाते हैं। इसलिए यदि गांव या पड़ोस के गाँव में कोई संक्रामक रोग फ़ैल जाए तो मवेशियों के बचाव के लिए निम्नाकिंत उपाय कारगर होते हैं –
सबसे पहले रोग के फैलने की सूचना अपने हल्के के पशुधन सहायक या ब्लॉक (प्रखंड) के पशुपालन पदाधिकारी को देनी चाहिए वे इसकी रोग- थाम का इंतजाम तुरंत करते हुए बचाव का उपय बतला सकते हैं।
अगर पड़ोस के गाँव में बीमारी फैली हो तो उस गाँव से मवेशियों या पशुपालकों का आवागमन बंद कर दिया जाए।
सार्वजनिक तालाब या आहार में मवेशियों को पानी पिलाना बंद कर दिया जाए।
सार्वजनिक चारागाह में पशुओं को भेजना तुरंत बंद कर देना चाहिए।
इस रोग के आक्रांत पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
संक्रामक रोग से भरे हुए पशु को जहाँ – तहाँ फेकना खतरे से खाली नहीं। खाल उतारना भी खतरनाक होता है। मृत पशु को जला देना चाहिए या 5-6 फुट गड्ढा खोद कर चूना के साथ गाड़ (विधिपूर्वक) देना चाहिए।
जिस स्थान पर बीमार पशु रखा गया हो या मरा हो उस स्थान को फिनाइल की घोल से अच्छी तरह धो देना चाहिए या साफ- सुथरा का वहाँ चूना छिड़क देना चाहिए, ताकि रोग के जीवाणु या विषाणु मर जाएँ।
खाल की खरीद – बिक्री करने वाले लोग भी इस रोग को एक गाँव से दुसरे गाँव तक ले जा सकते हैं। ऐसे समय में इसकी खरीद – बिक्री बंद रखनी चाहिए।