पशु पक्षियों की सुरक्षा वह देखरेख पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए
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वैसे तो जानवरों और पक्षियों से इंसान का प्यार कोई नयी बात नहीं है। युगों से इंसान पशु-पक्षियों से प्यार करता रहा है। दुनिया में कई सारे लोग हैं, जो पक्षियों और जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कई लोगों ने कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों को ऐसे अपना लिया है कि वे उन्हें अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो जानवरों को अपने बच्चे मानते हैं और वे उनका पालन-पोषण वैसे ही करते हैं, जैसे कि इंसानी बच्चों का किया जाता है। पशु-पक्षियों से इंसान के बेइंतेहा प्यार के कई सारे दिलचस्प किस्से भी हैं, लेकिन गीता रानी का पशु-पक्षियों से प्यार बहुत अनूठा है, बेहद निराला है। वो कई पशु-पक्षियों की देखभाल उनकी “माँ” की तरह करती हैं। उनके पास एक, दो, तीन या फिर दर्जन-भर कुत्ते नहीं, बल्कि तीन सौ से ज्यादा कुत्ते हैं। 75 बिल्लियाँ हैं। चिड़िया, मोर, तोता-मैना, कव्वे उनके घर को अपना घर समझते हैं। दिन-रात, सुबह-शाम, उठते-बैठते गीता सिर्फ और सिर्फ इन्हीं जानवरों और पक्षियों के बारे में सोचती हैं और उन्हीं के लिए काम करती हैं। वे ये कहने से ज़रा-सा भी नहीं झिझकती कि ये सारे जानवर और पक्षी उनके बच्चे हैं और वे इन सब की ‘माँ’हैं । पशु-पक्षियों के प्रति गीता की ममता, उनका प्यार-दुलार, त्याग और वात्सल्य कई लोगों के लिए कल्पना से परे है, लेकिन जीवन में गीता को दुःख और पीड़ा काफी मिली। इंसानों से प्यार नहीं, नफ़रत मिली और यही बड़ी वजह भी रही कि उन्होंने पशु-पक्षियों से प्यार किया, उन्हीं के लिए अपना जीवन भी समर्पित किया। बड़ी बात ये भी है कि पैदाइश से ही इंसानों के प्यार से वंचित रहीं गीता ने होश संभालते ही पशु-पक्षियों में प्यार ढूँढना शुरू कर दिया था।
गीता की कहानी केरल के वायनाड से शुरू होती हैं। गीता के पिता विजयन केरल के वायनाड के रहने वाले थे और उनकी मातृ भाषा मलयालम थी। विजयन पिल्लई जाति के थे और उनके पिता यानी गीता के दादा के पास करोड़ों रुपयों की ज़मीन-जायदाद थी। 100 एकड़ से ज्यादा ज़मीन के मालिक थे। बड़ा कॉफ़ी एस्टेट भी था उनके पास। गीता की माँ मल्लिगा तमिलनाडु के शिवकाशी की थी और उनकी मातृ भाषा तमिल थी। मल्लिगा नाडार जाति की थीं और उनके माता-पिता भी खूब रईस और रसूक़दार थे।
वो भी बहुत बड़ी है और इसी संपत्ति से मिलने वाले ब्याज़ से मैं ये शेल्टर चला रही हूँ। कई एनिमल लवर भी मुझे रुपये और सामान देकर जाते हैं। मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।” एक बड़ी बात गीता ने ये भी बताई कि उनके हिस्से की अच्छी ख़ासी ज़मीन-जायदाद है।
‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ शुरू करने के बाद भी दुःख और पीड़ा ने गीता का साथ नहीं छोड़ा। जानवरों-पक्षियों को ही अपनी संतान मानकर जीना शुरू करने वाली गीता के बेटे प्रवीण की जवानी में ही मौत हो गयी। ये मौत भी उस समय हुई जब एक फोटोग्राफर के तौर पर प्रवीण अपना कारोबार जमा चुके थे। प्रवीण पीलिया का शिकार हुए। बेटे की मौत के बाद बहु और दो पोतों की ज़िम्मेदारी गीता पर आ गयी। गीता ने बहु और दोनों पोतों की ज़िम्मेदारी ली और उन्हें अच्छे से बसाया और जमाया। गीता ने अपनी बेटी स्वप्ना की शादी भी अच्छे घर-परिवार में करवाई। बेटी और बहु दोनों अब मज़े में हैं।
बहु और बेटी दोनों गीता से उनके यहाँ आकर रहने की गुज़ारिश करते रहते हैं, लेकिन गीता जानवरों और पक्षियों को छोड़कर कहीं जाने के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे कहती हैं, “मैं जानती हूँ कि वे मुझे अपने पास क्यों बुलाती हैं। वे जानती हैं कि मेरे पास कितनी धन-दौलत है। उनके पास जाऊँगी तो वे बस इसी दौलत की मांग करेंगी। मैं उनसे कहती हूँ कि मेरे लिए ये जानवर ही अच्छे हैं, जो सिर्फ प्यार मांगते हैं।” गीता ने ये भी कहा, “मुझे कभी भी किसी भी इंसान से प्यार नहीं मिला। न मेरे दादा-दादी ने मुझसे प्यार किया न नाना-नानी ने। माता-पिता हमेशा लड़ते-झगड़ते ही रहे। भाई-बहन भी वैसे ही रहे। बेटा-बेटी को मेरी दौलत से प्यार था। मुझे जानवरों और पक्षियों ने बिना किसी चाह और उम्मीद से प्यार किया। मैंने भी उनके प्यार के बदले प्यार दिया। ये जानवर और पक्षी ही मेरे लिए मेरी संतान हैं।”
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