पशु उत्पीड़न और रोकथाम पर निबंध
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पशु उत्पीड़न और रोकथाम पर निबंध
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आज संसार में पशुओं का उत्पीड़न जिस बुरी तरह से किया जा रहा है उसे देखकर किसी भी भावनाशील व्यक्ति का हृदय दया से भरकर कराह
उठता है। पशुओं पर होने वाला अत्याचार मनुष्यता पर एक कलंक है। समस्त प्राणी-जगत में सर्वश्रेष्ठ एवं जेष्ठ कहे जाने वाले मनुष्य को पशुओं के साथ
क्रूरता का व्यवहार करना कहाँ तक शोभा देता है?
साधारण-सी बात है कि संसार में रहने वाले सारे प्राणियों को उस एक ही परमपिता परमात्मा ने पैदा किया है। जब मनुष्यों सहित सारे जीव एक ही
पिता के पैदा किये हुए हैं तब इस नाते वे सब आपस में भाई-बहन ही हैं। बुद्धि, विवेक तथा अधिकारों की दृष्टि से मनुष्य उन सबमें बड़ा है और अन्य
समस्त प्राणी उसके छोटे भाई-बहन ही हैं। बड़े तथा बुद्धिमान होने से मनुष्य का धर्म हो जाता है कि वह अपने छोटे जीव-बन्धुओं पर दया करे, उन्हें कष्ट से
बचाए, पाले और रक्षा करे। किन्तु खेद है कि बड़े भाई का कर्तव्य निभाने के बजाय मनुष्य उनसे क्रूर व्यवहार करता है।
यदि भाई-बहन की भावना तक न भी पहुँचा जाये तो भी मानवता के नाते उनके साथ निर्दयता का व्यवहार नहीं करना चाहिए। हम मनुष्यों की
तरह ही पशुओं को भी अपने प्राण प्यारे होते हैं, वे भी पीड़ा तथा सुख दुःख की इसी प्रकार अनुभूति करते हैं। मनुष्यों की तरह उनकी भी इच्छा रहती है कि
उन्हें भी कोई मारे-सताये नहीं। पर मनुष्य इस साधारण सभ्यता, जो मनुष्यता का पहला लक्षण है, का भी निर्वाह नहीं करते और पशुओं पर अकथनीय
अत्याचार किया करते हैं। जब तक जो मनुष्य अपनी ही तरह पशु-पक्षियों की पीड़ा अनुभव करना नहीं सीखता सच्चे मानों में उसे मनुष्य नहीं कहा जा
सकता। उसे तो निर्दयी एवं न्याय हीन न जाने क्या कहा जायेगा। ठीक-ठीक मनुष्य तो उसे कहा जायेगा जो अपने छोटे भाई-बहनों की तरह ही अन्य पशु-
पक्षियों एवं प्राणियों के साथ दया, करुणा तथा प्रेम का व्यवहार करे।
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