Hindi, asked by Anonymous, 7 months ago

pashchat sanskrati par ek lekh​

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Answered by Anonymous
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पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है।

यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई. अपने वैश्विक सम्बन्ध की सहायता से यूरोपीय संस्कृति का विकास संस्कृति की अन्य प्रवृत्तियों को अपनाने, उन्हें अनुकूलित करने और अंततः उन्हें प्रभावित करने के एक अखिल समावेशी आग्रह के साथ हुआ।

Answered by Rupma
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आधुनिकता बनाम प्राचीनता- आधुनिक संस्कृति प्राचीन हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों तथा पाश्चात्य संस्कृति का समन्वित रूप है।

सौन्दर्यमय दृष्टिकोण बनाकर जीवन के विषय में विचार करना, उसे अपनाना आधुनिक संस्कृति है। ‘स्व’ के अहम की वृद्धि और निजी सुख की अभिलाषा आधुनिक संस्कृति के लक्षण हैं। प्रकृति और राज्य की विधि-विधाओं का तिरस्कार आधुनिक संस्कृति का उदेश्य है।

सनातनता एवं निरन्तरता- आदि काल से अजस्र प्रवाहित भारतीय संस्कृति ने विरोधी आक्रमण संस्कृतियों के उपादेय तत्वों को ग्रहण कर अपने मूल रूप को वथावत् रखा। अपनी प्राचीन चिन्तन-पद्धति का उपहास, अपने सांस्कृतिक परिवेश से घृणा, अपनी परम्पराओं के प्रति आक्रामक रवैयों का विकास ब्रेनवाश का परिणाम है।

पवित्रता से व्यापार की ओर- श्री जयदत पंत के शब्दों में ‘हमारे तीर्थ अब पवित्रता के अर्थ को खोकर पर्यटन व्यवसाय के लिए आकर्षण का केन्द्र कहे जाने लगे। सभ्यता और कला के उत्कर्ष की प्रतीक हमारी मूर्तियाँ आदि तस्करी की शिकार हो गई, जिनके आगे हमारी पिछली पीढ़ी तक के कोटिश: लोग धूप जलाकर माथा नवाते थे, वे विदेशों में करोड़पतियों के उद्यानों और उनके निजी संग्रहालयों की शोभा बन गई। हमारे देवी-देवताओं की कीमत लगाई गई और हमने उनको रात के अन्धेरे में बेच दिया।

कृत्रिमता- आधुनिक, संस्कृति के मूलाधार सौन्दर्य और प्रेम ने जीवन के हर क्षेत्र में सौन्दर्य के दर्शन किए। आधुनिक संस्कृति में अभिश्प्त मानव को सावन के गधे की तरह हरा-हरा ही दिख रहा है। यह देख कवि महाकवि प्रसाद की आत्मा चीख उठी, ‘नर के बांटे क्या नारी की नग्न मूर्ति ही आई।’

वैयक्तिक- आधुनिक संस्कृति अहम् और निजी जीवन को महत्व देती है। अतः सर्वत्र अहम् का बोल बाला है। विद्यार्थी विद्रोह पर उतारू हैं, कर्मचारी हड़ताल पर आमदा हैं और अहम् में डूबी सत्ता आतंक फैला रही है। दूसरी ओर निजी जीवन में पारिवारिक एकता नष्ट हो रही है। बहू को परिवार इसलिए बुरा लगता है कि सामूहिक परिवार की समझौता भावना में उसके अहं को ठेस पहुँचती है।

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