pashu pakshiyon se sambandhit kavita
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चिड़िया निकली है आज लेने को दाना
समय रहते फिर है उसे घर आना
आसान न होता ये सब कर पाना
कड़ी धूप में करना संघर्ष पाने को दाना
फिर भी निकली है दाने की तलाश में
क्योकि बच्चे है उसके खाने की आस में
आज दाना नही है आस पास में
पाने को दाना उड़ी है दूर आकाश में
आखिर मेहनत लायी उसकी रंग मिल गया
उसे अपने दाने का कण पकड़ा
उसको अपनी चोंच के संग
ओर फिर उड़ी आकाश में जलाने को
अपने पंख भोर हुई पहुँची अपने ठिकाने को
बच्चे देख रहे थे राह उसकी आने को
माँ को देख बच्चे छुपा ना पाए अपने मुस्कुराने को
माँ ने दिया दाना सबको खाने को
दिन भर की मेहनत आग लगा देती है
पर बच्चो की मुस्कान सब भुला देती है
वो नन्ही सी जान उसे जीने की वजह देती है
बच्चो के लिए माँ अपना सब कुछ लगा देती है
फिर होता है रात का आना सब सोते है
खाकर खाना चिड़िया सोचती है
क्या कल आसान होगा पाना दाना
पर अपने बच्चो के लिए उसे कर है दिखाना
अगली सुबह चिड़िया फिर उड़ती है लेने को दाना
गाते हुए एक विस्वास भरा गाना
– आशीष राजपुरोहित