passage:-दर्द के मारे एक तो मरीज को वैसे ही नींद नहीं आती, यदि थोड़ी-बहुत आ भी जाए तो मिलने
वाले जगा देते है-ख़ास कर वे लोग जो सिर्फ औपचारिकता निभाने आते है। इन्हें मरीज से हमदर्दी
नही होती, ये सिर्फ सूरत दिखाने आते है। ऐसे में एक दिन मैंने तय किया कि आज कोई भी आए, मैं
आँख नही खोलूँगा| चुपचाप पड़ा रहूँगा| आफिस के बड़े बाबु आए और मुझे सोया जानकर वापस जाने
के बजाय वे सोचने लगे की यदि मैंने उन्हें नही देखा तो कैसे पता चलेगा कि वे मिलने आए थे|
अतः उन्होंने मुझे धीरे-धीरे हिलाना शुरु किया| फिर भी जब आँखे नही खुली तो उन्होंने मेरी टाँग के
टूटे हिस्से को जोर से दबाया| मैंने दर्द के मारे कुछ चीखते हुए जब आँख खोली तो वे मुस्कुराते हुए
बोले-“कहीए, अब दर्द कैसा है?"
(१) आकृात पूण कााजए :
लेखक ने एक दिन तय किया -
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