पता आई है वैसे ही बनाती है। उसमें
वाटहीन बनाता है लेकिन मधुमक्खी अपने
सभा प्राणियों के संबंध में प्रकृति के व्यवहार
लगता है कि प्रकति ने उन्हें अपने आंचल
ए उनकी आंतरिक गतिशीलता को ही प्रकार
खण्ड क
खत गद्याश को ध्यानपर्वकपटकर पूछे गए प्रश्नों के उतर लिखित
लाखा वषों से मधमकावीस तरह छत्ता बनाती आईहवन
फर-बदल करना उसके लिए संभव नहीं है। छत्ता तानाहान
अभ्यास के दायरे में आबट पहनी इस तरह सभी प्राणया
में साहस का अभाव दिखाई पड़ता है। ऐसा लगता का
सुरक्षित रखा है, उन्हें विपत्तियों से बचाने के लिए उनका
ने घटा दिया है ।
लेकिन सृष्टिकर्ता ने मनष्य की रचना करने में अद्भुत
मानव के अंत:करण को बाधाहीन बनाया है। हालाक
दुबल बनाकर उसके चित्त को स्वच्छंटता प्रदान की है। इस
कहता है- "हम असाध्य को संभव बनाएंगे" अथात जालन
रहगा, हम उससे संतष्ट नहीं रहेंगे। जो कभी नहीं हुआ,
मनुष्य ने अपने इतिहास के प्रथम युग में जब प्रचडकाय त्रा
किया तो उसने हिरण की तरह पलायन करना नहीं चाहान
उसने असाध्य लगने वाले कार्य को सिद्ध किया -पत्थरा का
निर्माण किया । प्राणियों के नखदंत की उन्नति केवल प्राकृतिक
लेकिन मनुष्य के ये नखदंत उसकी अपनी सष्टि क्रिया से निमित
उसने पत्थरों को छोड़कर लोहे के हथियार बनाए । इससे यह प्रन
अंत:करण संधानशील है । उसके चारों ओर जो कुछ है उस पर
जाता । जो उसके हाथ में नहीं है उस पर अधिकार जमाना चाहता
रखा है पर वह उससे संतुष्ट नहीं। लोहा धरती के नीचे है, मानव उसे वह
है। पत्थर को घिसकर हथियार बनाना आसान है लेकिन वह लोहे का
ढालकर, हथौड़े से पीटकर, सब बाधाओं को पार करके, उसे अपने अधान
के अंत:करण का धर्म यही है कि वह परिश्रम से केवल सफलता ही नहीं बाल
प्राप्त करता है।
(क) मनुष्येतर प्राणियों की रचना में प्रकृति के साहस का अभाव' का क्या आशय है
सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
(ख) मनुष्य की भीतरी और बाहरी बनावट किस प्रकार की है ?
(ग) मनुष्य ने लोहे के हथियार पाने के लिए क्या मेहनत की और क्यों ?
.
नीलिमा
म अदभत माहस का परिचय दिया है।
है। हालांकि बाद रूप मे उसे विवस्त्र, निरस्त्र और
न की है। इस मुक्ति से आनंदित होकर मनुष्य
अर्थात् जो सदा से होता आया है और हाल
नहीं हुआ, वह हमारे द्वारा होगा। इसीलिए
जब प्रचंडकाय प्राणियों के भीषण नखदता का सामना
नहीं चाहा, न कछए की तरह छिपना चाहा।
-पत्थरों को काटकर भीषणतर नखदतों का
वल प्राकृतिक कारणों पर निर्भर होती है।
क्रिया से निर्मित थे। इसलिए आगे चलकर
। इससे यह प्रमाणित होता है कि मानवीय
कुछ है उस पर ही वह आसक्त नहीं हो
रजमाना चाहता है। पत्थर उसके सामने
चि है, मानव उसे वहाँ से बाहर निकालता
न वह लोहे को गलाकर, साँचे में डाल
के, उसे अपने अधीन बनाता है। मनुष्य
वल सफलता ही नहीं बल्कि आनंद भीmanushya praniyon Ke Rakhna Prakriti Ka satka Bhav kya aashay hai spasht kijiye
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pagal hai kya...................
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