"पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं। अपने रंध्रो के सहारे। अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
"काव्यांश का शीर्षक एवं कवि का नाम लिखिए
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koshish karne walo ki kabi haar nahi hoti♂️
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