पतंग नामक पाठ का केंद्रीय भाव बताइए
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जीवन परिचय-आलोक धन्वा सातवें-आठवें दशक के बहुचर्चित कवि हैं। इनका जन्म सन 1948 में बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था। इनकी साहित्य-सेवा के कारण इन्हें राहुल सम्मान मिला। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् ने इन्हें साहित्य सम्मान से सम्मानित किया। इन्हें बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान व पहल सम्मान से नवाजा गया। ये पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। इन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म तथा साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों व विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की है।
रचनाएँ-इनकी पहली कविता जनता का आदमी सन 1972 में प्रकाशित हुई। उसके बाद भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनो की बेटियाँ कविताओं से इन्हें प्रसिद्ध मिली। इनकी कविताओं का एकमात्र संग्रह सन 1998 में ‘दुनिया रोज बनती है’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में व्यक्तिगत भावनाओं के साथ सामाजिक भावनाएँ भी मिलती हैं, यथा
जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं वहाँ मेरा क्या हैं
मैं नहीं जानता लेकिन एक दिन जाना हैं उधर।
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Explanation:
संग्रह का हिस्सा है। यह एक लंबी कविता है जिसके तीसरे भाग को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। पतंग के बहाने इस कविता में बालसुलभ इच्छाओं और उमंगों का सुंदर चित्रण किया गया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए सुंदर बिंबों का उपयोग किया गया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है। आसमान में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, बालमन जिन्हें छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।
कविता धीरे-धीरे बिंबों की एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं के मृदंग बजते हैं। जहाँ छतों के ख़तरनाक किनारों से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिर-गिरकर सँभलते हैं और पृथ्वी का हर कोना ख़ुद-ब-ख़ुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नयी-नयी पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए फिर-फिर भादो (अँधेरे) के बाद के शरद ( उजाला) की प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्या भी उनके साथ हैं ?
मुझे लगता है यह आपका सही उत्तर है