Hindi, asked by yogininavghare15, 3 months ago

पटि पुस्तक की आत्मकथा​

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Answered by royalnamkeencorner
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Answer:

मैं एक फटी हुई पुस्तक हूं जो कभी बिल्कुल नई हुआ करती थी। जब मैं नई थी तब मुझे मेरा मालिक अच्छे से रखता था और मुझे पढ़ता भी था। मगर ज्यों-ज्यों मैं बड़ी होने लगी मेरे मालिक का ध्यान मुझमें से हटता गया और धीरे धीरे वह मेरी कदर करना छोड़ता गया।

Answered by Arjun5996
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Answer:

मैं एक फटी हुई पुस्तक हूं जो कभी बिल्कुल नई हुआ करती थी। जब मैं नई थी तब मुझे मेरा मालिक अच्छे से रखता था और मुझे पढ़ता भी था। मगर ज्यों-ज्यों मैं बड़ी होने लगी मेरे मालिक का ध्यान मुझमें से हटता गया और धीरे धीरे वह मेरी कदर करना छोड़ता गया। मुझे सही ढंग से ना रखने की वजह से मेरा स्वरूप बिगड़ता गया और मेरी हालत खराब होती चली गई। इस प्रकार में जगह-जगह से फटने लगी और मेरे कई पन्ने भी निकलते चले गए। इसके साथ उन पन्नों का ज्ञान भी मुझमें से निकल गया और मैं पहले से कम ज्ञान को संरक्षित करने वाली पुस्तक बन गई।

इसके लिए मैं अपने आप को जिम्मेदार बिल्कुल नहीं मानती क्योंकि मुझ में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं अपने मालिक से यह कह सकूं कि वह मेरा अध्ययन करे। यदि मुझमें इतनी शक्ति होती तो मैं अपने मालिक से हर दिन मेरा दिन करने को कहती जिससे मेरे मालिक का मेरे प्रति आकर्षण हमेशा बना रहे।

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