पत्र संस्कृति में विकसित करने के लिए पिछले शताब्दी में क्या किया गया
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ये मेरी जमी ,ये मेरे पहाड़
मेरी रँगतो की शान हैं
ये जन्म भूमि यह कर्म भूमि
ये ही मेरा स्वभिमान है
ये ऊंचे हिमालय मेरे गढ़वाल का मान है
और आस्था के ये चारो धाम मेरे गढ़-कुमो की शान है
ये रँगीले पहाड़ पुकार रहे अपनी माटी को
सुनने को तरस रहा है ये नदियों के शोर को
बुला रहा अपने अपनो को
जो छोड़ चुके है अपने इस जीवन को
करता विनती ये पहाड़ हैं अपनो के लौट आने की इसको अब भी एक आस है
जो लौट आए हैं उनको करता ये नमन है
जो कर बढ़ा रहे इस पर्वत का मान उनको मेरा नमन है
धन्य हैं वो लोग जो बन रहे मेरी आवाज हैं
मैं ही शीष धरा का मुझसे ही स्वर्ग का द्वार और बता रहे हैं
दुनिया को शहर की आबोहवा से कितना बड़ा है ये उत्तराखंड ये पहाड़
सुमित सिंह पवार
सीमा रावत
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