पटको कि हानियों के बारे में ५० से १०० शब्दों में लिखिए
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दिवाली खुशियों का पर्व है, सुख-शांति का पर्व है, पटाखों के कान-फोड़ू शोर और प्रदूषण से त्योहार की खुमारी को बर्बाद न करें, जानें पटाखों से होने वाले नुकसान।
पटाखों से सबसे ज्यादा नुकसान उन बुजुर्गों को होता है, जो एक तरफ बुढ़ापे का मार झेल रहे होते हैं और दूसरी तरफ तमाम बीमारियों से घिरे होते हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए तो पटाखे किसी विनाशकारी हथियार से कम नहीं हैं। पटाखों से सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि हानिकारक गैसें हवा में घुल जाती हैं। जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं।
पटाखों की धुंध यानी स्मॉग से सांस फूलने, घबराहट, खांसी, हृदय और फेफड़े संबंधी दिक्कतें, आंखों में संक्रमण, दमा का अटैक, गले में संक्रमण आदि के खतरे होते हैं।
कई जानकारों के अनुसार दीपावली के दौरान आतिशबाजी के कारण दिल का दौरा, रक्तचाप, नाक की एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे बढ़ जाते हैं। इसलिए दमा और दिल के मरीजों को दीपावली के मौके पर खास तौर सावधानियां बरतनी चाहिए।
पटाखों से जलने, आंखों को गंभीर क्षति पहुंचने और कान का पर्दा फटने तक की नौबत आ सकती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार दिल्ली में पटाखों के कारण दीपावली के बाद वायु प्रदूषण छह से दस गुना और आवाज का स्तर 15 डेसिबल तक बढ़ जाता है।
तेज आवाज वाले पटाखों का सबसे ज्यादा असर बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दिल और सांस के मरीजों पर पड़ता है।
जानकारों के अनुसार पटाखों में कम से कम 21 तरह के रसायन मिलाए जाते हैं। वहीं कई वैज्ञानिकों का कहना है एक लाख कारों के धुएं से जितना नुकसान पर्यावरण को होता है उतना नुकसान 20 मिनट की आतिशबाजी से हो जाता है।
आम दिनों में शोर का मानक स्तर दिन में 55 व रात में 45 डेसिबल के लगभग होता है लेकिन दीपावली आते-आते ये 70 से 90 डेसिबल तक पहुंच जाता है। इतना अधिक शोर हमें बहरा करने के लिए पर्याप्त है।
हर बार दीपावली पर कई लोग पटाखों से जल जाते हैं और कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। अनार, रॉकेट, रस्सी बम जैसे धमाकेदार पटाखों के शौकीनों के साथ इन हादसों की ज्यादा संभावना होती है। ऐसे में क्षणिक सुख पहुंचाने वाली विध्वंसकारी चीज से बचें।
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