Hindi, asked by zikrashanna2814, 6 months ago

Patake na chodane ke prathi jaagrokatha paidha karen

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Answered by devrajdhanda63
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Explanation:

साल भर के इंतजार के बाद लीजिए दीपावली भी आ ही गई। अमावस्या की रात घर को रोशनी से जगमग करने की तैयारी में क्या गरीब और क्या अमीर सभी अपने−अपने तरीके से जुटे रहे। लेकिन अपने लिए और बच्चों के लिए अगर आप पटाखे खरीदने बाजार जा रहे हैं तो जरा रुकिए। क्या आपको पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने भारत में पटाखों को चलाने का समय निर्धारित कर दिया है? क्या आपको पता है कि पटाखे छोड़ने से हम सभी किन बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। क्या आपको मालूम है कि हम अपनी क्षण भर की खुशी के लिए पूरी प्रकृति और अपने आसपास के पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाते हैं?कोई दो राय नहीं कि दीपावली पर पटाखों की खरीदारी बरसों से होती आई है। बड़े इसे चलाएं या न चलाएं मगर बच्चों की जिद के आगे वे बेबस होते हैं और मजबूर होकर एक−दो सौ से लेकर हजार और दस हजार रुपए तक के पटाखे खरीद लाते हैं। इनमें कई पटाखे ऐसे होते हैं जो 125 डेसिबल की ध्वनि मात्रा से भी ज्यादा होते हैं। ये वे पटाखे हैं जिन पर भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पाबंदी लगा रखी है। मगर कोई सुनने को राजी नहीं, सौ या हजार बमों की लड़ियां या जिसे लोग चटाई बम भी कहते हैं, उससे होने वाला विस्फोट और धुएं से तो आसपास का वातावरण बुरी तरह दूषित हो जाता है। इन पर भी सख्त पाबंदी लगाने की कोशिश हो रही है।

भारत में बढ़ती आबादी से वैसे ही पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। मगर दिवाली की रात पटाखों से निकलने वाले धुएं से यह प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है। मगर कुछ पल की खुशी और पैसे के दिखावे के आगे लोग आंखें मूंदे रहते हैं। उन्हें शायद पता नहीं होता कि वे पटाखे जला कर वायुमंडल में कितना प्रदूषण घोल रहे हैं। यही वजह है कि दिल्ली में पिछले तीन−चार साल से बाकायदा अभियान चलाया जा रहा है। यहां हर साल कई स्कूली बच्चे पटाखे न चलाने की शपथ लेते हैं। हालांकि इस अभियान को पूरी सफलता मिलनी अभी बाकी है।

दरअसल इन पटाखों में जिन रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है वह बेहद खतरनाक है। कॉपर, कैडियम, लेड, मैग्नेशियम, सोडियम, जिंक, नाइट्रेट और नाइट्राइट जैसे रसायन का मिश्रण पटाखों को घातक बना देते हैं। इससे 125 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि होती है। अचानक इन पटाखों से फटने से आदमी कुछ पल के लिए बहरा हो जाता है। कई बार पीड़ित स्थायी रूप से भी बहरा हो जाता है। पटाखों से निकली चिंगारी से हर साल सैंकड़ों लोगों की आंखें और चेहरे जख्मी हो जाते हैं। सांस की बीमारी तो होती ही है। ऐसे समय में दमे के रोगी की परेशानी बढ़ जाती है।

डॉक्टरों के मुताबिक पटाखों से आम जन ही नहीं घरों और अस्पतालों में मरीजों और वृद्धों को भी काफी परेशानी होती है। पालतू पशु−पक्षियों की हालत और खराब होती है। मनुष्यों की श्वास नली में रुकावट, गुर्दे में खराबी और त्वचा संबंधी बीमारियां हो जाती हैं। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक का भी खतरा रहता है। मानसिक अशांति और घबराहट के साथ उल्टी होना आम बात है। कई बार नर्वस सिस्टम भी गड़बड़ा जाता है।

फिर भी लोग पटाखे चलाने के लिए क्यों उतावले हैं यह समझ से बाहर है? हर साल पटाखों से न सिर्फ दुकानों में बल्कि घरों में भी आग लग जाती है। न जाने कितने लोग झुलस जाते हैं। इन हादसों में न जाने कितने घरों की खुशियां भी झुलस जाती हैं। अगर इन पटाखों से घर के सदस्य, पड़ोसी और हमारे आस−पास का वातावरण प्रदूषण की चपेट में आता है तो हमारा क्या कर्तव्य बनता है। क्या फिर भी हम अपने स्वार्थ, अपनी खुशी और दिखावे के लिए पटाखे चलाते रहेंगे?

दुखद यह है कि इन पटाखों को बनाने वाले ज्यादातर बच्चे और किशोर होते हैं। उन पर खतरनाक रसायनों का भयावह असर होता है। कुछ सालों के बाद वे बीमार होते जाते हैं और युवावस्था तक पहुंचते−पहुंचते उनकी मृत्यु हो जाती है।

पटाखों के संबंध में कई नियम भी बने पर जब लोगों को अपने पर्यावरण की ही चिंता नहीं तो कानूनी नियम की क्या करें। निद्रा मनुष्य का मौलिक अधिकार है। इसे ध्यान में रखते हुए ही सितम्बर 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने दस बजे के बाद ज्यादा शोर और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे चलाने पर अंकुश लगाया था मगर फिर भी लोग देर रात तक पटाखे चलाते नजर आए। अस्पताल, शिक्षण संस्थान, कोर्ट और धार्मिक स्थलों से 100 किलोमीटर की दूरी तक पटाखे न चलाने के नियम बने। सर्वोच्च अदालत ने यह भी आदेश दिया कि पटाखे सिर्फ शाम छह बजे से रात दस बजे तक चलाए जाएं। बीस से भी ज्यादा ऐसे पटाखों पर बंदिश लगाई गई जो 125 डेसीबल की ध्वनि सीमा से ज्यादा थे। यहां तक कि अक्टूबर 1999 में ऐसे पटाखे बनाने पर भी बंदिश लगा दी गई थी जिनका विस्फोट 125 डेसीबल से ज्यादा था। मगर आज भी इन नियमों का उल्लघन हो रहा है और वातावरण प्रदूषित हो रहा हैं।

कई स्कूलों के शिक्षक−शिक्षिकाओं का कहना है कि हम बच्चों को तो पटाखों के नुकसान के बारे में बताते ही हैं साथ ही बच्चों के माता−पिता को भी यह बताते हैं कि वे खुद भी पटाखे न चलाएं और न ही अपने बच्चों को चलाने की अनुमति दें। ऐसे मौके पर बच्चों को भारत की परम्परा और त्योहारों पर पवित्रता और उसके उद्देश्य के बारे में बताएं।

दीपावली भारत का ही नहीं बल्कि विश्व भर के हिंदुओं का त्योहार है। इसमें अन्य धर्मों के लोग भी उत्साह से शामिल होते हैं। इसकी पवित्रता को यों ही धुएं में न उड़ाएं। इस त्योहार को मनाने के लिए घर को सजा कर उसे दीये, मोमबत्ती और बिजली के बल्बों से जगमग करें। मुख्य द्वार और आंगन में रंगोली बनाएं। महिलाएं इस दिन बच्चों−बड़ों के लिए कई तरह के पकवान बना सकती हैं। गणेश−लक्ष्मी की पूजा के बाद अपने घर की सजावट को निहारें। इससे बेहद खुशी मिलेगी। ईश्वर की बनाई इस सुंदर प्रकृति को बचाए रखने में अपना योगदान दें।

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