Hindi, asked by lakshyamalviya499, 8 months ago

पद 1
हम तौ एक एक करि जांनां।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां ।।
एकै पवन एक ही पानी एकै जोति समाना।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कोहरा सांना।।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि लूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर गरबांना
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवाना।।​

Answers

Answered by rohitmishra73
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Explanation:

कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

विशेष-

1. कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक बताया है।

2. उन्होंने माया-मोह व गर्व की व्यर्थता पर प्रकाश डाला है।

3. ‘एक-एक’ में यमक अलंकार है।

4. ‘खाक’ और ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

5. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

6. सधुक्कड़ी भाषा है।

7. उदाहरण अलंकार है।

8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।

Answered by vatsalpal13jun2009
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Answer:

यह दोहे कबीर दास जी के हैं। इन दोहों में कबीर जी ने एकता का संदेश दिया है। उन्होंने बताया है कि हम सब एक ही हैं और हमें एकता को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने इस एकता के संदेश को अलग-अलग तत्वों जैसे पानी, जोति, खाक, कोहरा आदि के माध्यम से बताया है। उन्होंने कहा है कि माया (मानव जीवन की भ्रमणात्मकता) से दूर रहने से हम भयमुक्त होते हैं और इसी से हमारा समूचा विश्व व्याप्त होता है।

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