पद 1 मिरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई छोड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई? संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही
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? संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी भगत
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