पद
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ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा ते, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न वागी।
ज्यौ जल माह तेल की गागरि, बूंब न ताको लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँन बोरयौं, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाटी न्यौ पागी॥
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