पथ भूल न जाना पथथक कह ीं
पथ मेंकाींटे तो होींगेह ,
दू र्ाादल-सरिता, सि होींगे|
स ींदि थगरि-र्न-र्ाप - होींग ,
स ींदि-स ींदि थनर्ाि होींगे|
स ींदिता क मृग-तृष्णा में
पथ भूल न जाना पथथक कह ीं ||
जब ज र्न कथिन कमा-पगडींड पि,
िाह का मन उन्म ख होगा |
जब सपनेसब थमट जाएीं गे,
कताव्य-मागा सम्म ख होगा |
तब अपन प्रथम थर्फलता में,
पथ भूल न जाना पथथक कह ीं ||
अपनेह थर्म ख-पिाए बन
आँखोीं के सम्म ख आएीं गे|
पग-पग पि घोि थनिाशा के,
कालेबादल छा जाएीं गे|
तब अपनेएकाक पन में,
पथ भूल न जाना पथथक कह ीं ||
(i).पथ में काँटे थकसके प्रत क हैं?
(क)सुख (ख) दुख (ग) बाधा (घ) मागग
(ii). ‘थनर्ाि’ का प्रयोग हुआ है
(क)तालाब (ख) नद (ग) क आँ (घ) र्िना
(iii) िाह का मन कब उन्म ख होता है
(क)जब उसके ज र्न में स ख आता है (ख) जब उसके ज र्न में कथिनाई आत है
(ग)जब र्ह दू सिे पि थनभाि किता है (घ) जब र्ह स्वयीं काया किता है
(iv)कथर् थकस पथ को भूलने से मना किता है ?
(क)ज र्न के कथिन पथ को (ख) द रूह िास्ते को
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(ग) शहि के िास्ते को (घ) थकस को नह ीं
(v) ‘कथिन-कमा-पगडींड पि’ मेंकौन-सा अलींकाि है?
(क)रूपक (ख) यमक (ग) उत्प्रेक्षा (घ) अनुप्रास
(vi) काव्ाांश का उचित शीर्गक
(क)ज र्न (ख) कथिनाई (ग) पथथक (घ) िास्ता
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1. सुख
२. कुआं
३. जब उसके जल में कठिनाई आई
४.२
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स ींदि थगरि-र्न-र्ाप - होींग ,
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