पथिक क्या सोचकर जल्दी-जल्दी चलता है?
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पथिक कौ भय है कि कही जीवन-पथ में ही काल-रात्रि न आ जाए। दिन भर का थका-माँदा पथिक रात के अंधकार के, विषाद के आने से पहले अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है। कवि को लगता है कि दिन बहुत जल्दी ढल रहा है। कुठा और निराशा से घिरे व्यक्ति के जीवन में दिन भी जल्दी जल्दी ढल जाता है।
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