पथ में काटे तो होंगे ही इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं
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कर्तव्य पथ के पथिक को प्राकृतिक उपादानों की सुन्दरता मृगतृष्णा के विमोह में फंसा लेने वाली सिद्ध न हो जाए, जिससे वह अपने कर्तव्य पालन में विफल होकर उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सके। कवि तो पथिक को आगाह करता है कि वह अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होता ही रहे।
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Kavi ka arth hai chahe safalta pane ke liye aap kissi bhi marg par par chale aap ko kathin parishram toh karna hi hoga apke marg par mushkile jaroor aayengi jo unhe paar karne ka kasba rakta hai vo inhe par kar safal ho jata hai
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