ेपद्ाशां का ि-प्रिगां भािाथ णलललिए – (4) ऊधौ, तमु हौ असत बड़भागी। अपरि रहत िनहे तगा त,ैंनासहन मन अनरुागी। परुइसन पात रहत जल भीतर, ता रि देह न दागी। ज््ौं जल माहँतेल की गागरर, बदँू न ताकौं लागी।"
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