World Languages, asked by mahasweta23, 6 months ago

पठित-अवबोधनम्
II.प्रश्ननिर्माणं कुरुत।
1.बाल: पुष्पोद्यान अगच्छत्।
2.कुक्कुर: मानुषाणामः मित्रम् अस्ति।
3.क्रोधवशात रावण: उद्यत: अभवत्।
4. जटायु: रावण अपश्यत्।
5.खगाधिप: जटायु:आसीत्।


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Answered by satyamrastogi1682006
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Answer:

प्रस्तुत पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि—प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को परदाराभिमर्शनरूप निन्घ एवं दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहते हैं। रावण की परिवर्तित मनोवृत्ति को देख वे उस पर भयावह आक्रमण करते हैं। महाबली जटायु अपने तीखे नखों तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं तथा पञ्जों के प्रहार से उसके विशाल धनुष को खंडित कर देते हैं। टूटे धनुष, मारे गये अश्वों और सारथी वाला रावण विरथ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार करता है परंतु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चु—प्रहार करते हैं, उसके बायें भाग की दशों भुजाओं को क्षत—विक्षत कर देते हैं।

सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।

वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना ।।1।।

जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।

अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ।।2।।

तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।

निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ।।3।।

ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।

वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम् ।।4।।

निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।

न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ।।5।।

वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।

न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ।।6।।

तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।

चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः ।।7।।

ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।

चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनुः ।।8।।

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