Hindi, asked by yadavpragty, 3 months ago

पठित पाठ 'मेरी क्यूरी : रेडियम खोजने वाली' के मुख्य चरित्र ‘मेरी क्यूरी' की
किन-किन विशेषताओं से आप अत्यधिक प्रभावित हुए? किन्हीं चार विशेषताओं का
उल्लेख कीजिए।
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Answers

Answered by rajaniseelam2006
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Explanation:

रामधारी सिंह 'दिनकर' परिचय

(२३ सितंबर १९०८-२४ अप्रैल१९७४) का जन्म सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था । उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की । उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था । वह एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे । उनकी अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है । उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी काव्य रचनायें : प्रण-भंग , रेणुका, हुंकार, रसवंती, द्वन्द्व गीत, कुरूक्षेत्र, धूपछाँह, सामधेनी, बापू, इतिहास के आँसू, धूप और धुआँ, मिर्च का मज़ा, रश्मिरथी, दिल्ली, नीम के पत्ते, सूरज का ब्याह, नील कुसुम, नये सुभाषित, चक्रवाल, कविश्री, सीपी और शंख, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, मृत्तितिलक, आत्मा की आँखें, हारे को हरिनाम, भगवान के डाकिए ।

Biography Ramdhari Singh Dinkar

जीवन परिचय रामधारी सिंह 'दिनकर'

1. प्रार्थना / रामधारी सिंह 'दिनकर'

मेरे पाँव के पास चाँदनी बिछाओ भगवान !

दूज के चाँद पर मुझे खड़ा करो

किसी महाराजा के समान ।

टखने डूबे हों चाँदनी में,

मेरे मोजे मुलायम,चमकदार हों ;

और मेरे मस्तक पर

चाँदनी की झरती फुहार हो ।

शीतलता पर इतराऊँ, चमक पर मचलूँ

चाँदनी में तैरता हुआ मंजिल की ओर चलूँ ।

क्योंकि सूरज काल हो गया है ।

उसका चेहर शेर के समान लाल हो गया है ।

2. एकान्त / रामधारी सिंह 'दिनकर'

लोग अकेलेपन की शिकायत करते हैं ।

मैं समझ नहीं पाता ,

वे किस बात से डरते हैं ।

अकेलापन तो जीवन का चरम आनन्द है ।

जो हैं निःसंग,

सोचो तो, वही स्वच्छंद है ।

अकेला होने पर जगते हैं विचार;

ऊपर आती है उठकर

अंधकार से नीली झंकार ।

जो है अकेला,

करता है अपना छोटा-मोटा काम,

या लेता हुआ आराम,

झाँक कर देखता है आगे की राह को,

पहुँच से बाहर की दुनिया अथाह को;

तत्वों के केन्द्र-बिन्दु से होकर एकतान

बिना किसी बाधा के करता है ध्यान

विषम के बीच छिपे सम का,

अपने उदगम का ।

3. अकेलेपन का आनन्द / रामधारी सिंह 'दिनकर'

अकेलेपन से बढ़कर

आनन्द नहीं , आराम नहीं ।

स्वर्ग है वह एकान्त,

जहाँ शोर नहीं, धूमधाम नहीं ।

देश और काल के प्रसार में,

शून्यता, अशब्दता अपार में

चाँद जब घूमता है, कौन सुख पाता है ?

भेद यह मेरी समझ में तब आता है,

होता हूँ जब मैं अपने भीतर के प्रांत में,

भीड़ से दूर किसी निभृत, एकान्त में ।

और तभी समझ यह पाता हूँ

पेड़ झूमता है किस मोद में

खड़ा हुआ एकाकी पर्वत की गोद में ।

बहता पवन मन्द-मन्द है ।

पत्तों के हिलने में छन्द है ।

कितना आनन्द है !

4. उखड़े हुए लोग / रामधारी सिंह 'दिनकर'

अकेलेपन से जो लोग दुखी हैं,

वृत्तियाँ उनकी,

निश्चय ही, बहिर्मुखी हैं ।

सृष्टि से बाँधने वाला तार

उनका टूट गया है;

असली आनन्द का आधार

छूट गया है ।

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