Hindi, asked by menachauhan23, 7 months ago

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पद्य कजिस
आशीववि माशीविाप
कयोकि
मैय्या
कयोंकि

आमषय
सन्यासी
सयासी
विन्यापत्त

Answers

Answered by ahmedps
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Explanation:

प्रिय पाठको,

आज एक कविता रोज़ में जायसी. पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी.

जायसी की पैदाइश सन् 1500 के आस-पास की कही गई है. अवधी के बड़े कवियों में शुमार जायसी

‘पद्मावत’ की वजह से जब तक यह सृष्टि है, तब तक अमर हैं.

चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मिनी से जुड़े इतिहास और किस्सों को जायसी ने ‘पद्मावत’ में एक सूत्र में पिरोया है. इसे सूफी काव्य भी माना जाता है. लेकिन इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है कि जायसी ने इसमें भारतीयता का कितना ख्याल रखा है.

रत्नसेन, पद्मिनी और हीरामन तोते के सहारे जायसी ने इतिहास को कल्पना और कल्पना को इतिहास की तरह प्रामाणिक बना देने का बहुत रचनात्मक खेल ‘पद्मावत’ में खेला है.

अब पेश है ‘पद्मावत’ में आए ‘नागमती वियोग खंड’ के दो शुरुआती अंश :

नागमती चितउर पथ हेरा। पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा॥

नागर काहु नारि बस परा। तेइ मोर पिउ मोसौं हरा॥

सुआ काल होइ लेइगा पीऊ। पिउ नहिं जात, जात बरु जीऊ॥

भएउ नरायन बाबंन करा। राज करत राजा बलि छरा॥

करन पास लीन्हेउ कै छंदू। बिप्र रूप धारि झिलमिल इंदू॥

मानत भोग गोपिचंद भोगी। लेइ अपसवा जलंधार जोगी॥

लेइगा कृस्नहि गरुड़ अलोपी। कठिन बिछोह, जियहिं किमि गोपी?

सारस जोरी कौन हरि, मारि बियाधा लीन्ह?

झुरि झुरि पींजर हौं भई, बिरह काल मोहि दीन्ह॥1॥

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पिउ बियोग अस बाउर जीऊ। पपिहा निति बोले ‘पिउ पीऊ॥’

अधिक काम दाधो सो रामा। हरि लेइ सुवा गएउ पिउ नामा॥

बिरह बान तस लाग न डोली। रक्त पसीज, भीजि गई चोली॥

सूखा हिया, हार भा भारी। हरे हरे प्रान तजहिं सब नारी॥

खन एक आव पेट महं! सांसा। खनहिं जाइ जिउ, होइ निरासा॥

पवन डोलावहिं सींचहिं चोला। पहर एक समुझहिं मुख बोला॥

प्रान पयान होत को राखा? को सुनाव पीतम कै भाखा?

आजि जो मारै बिरह कै, आगि उठै तेहि लागि।

हंस जो रहा सरीर महं, पांख जरा, गा भागि॥2॥

अर्थात् : चित्तौड़ में नागमती को राजा की राह देखते हुए एक साल गुजर गया है. फिक्र और इंतजार में डूबी नागमती सोच रही है कि जब से प्रियतम गए हैं, एक बार भी इधर का रुख नहीं किया. उसे लग रहा है कि कहीं वह एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में तो नहीं उलझ गए. वह तोता मेरे पास क्या आया, प्रियतम ही दूर चले गए. इससे तो बेहतर था मेरी जान ही चली जाती. रानी इस तोते की तुलना राजा बलि से छल करने वाले ब्राह्मण, कर्ण से छल करने वाले राजा इंद्र से कर रही है. वह राजा भर्तृहरि और राजा गोपीचंद को भी इस सिलसिले में याद कर रही है और गोपियों से दूर कर दिए गए कृष्ण को भी. उसे अपना वियोग बहुत मुश्किल जान पड़ रहा है. वह बहुत दुबली हो गई है. मुहावरे में कहें तो हड्डियों का ढांचा हो गई है. वह विरह में जल रही है.

दूसरे हिस्से में वह पागल भी हो गई है. वह सब वक्त पपीहे-सी पी-पी पुकारती रहती है. काम (sex) की आग में जल रही है. कामदेव का तीर लगने से उसे इतना खून निकला कि उसकी चोली पूरी तरह भीग गई. उसकी सखियां भी उसे लवेरिया-पीड़ित मान चुकी हैं. वह इस स्थिति से पूरी तरह थक चुकी है.

तो ये थे जायसी.

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