पद्यांश-2
एक रात की है।
जलकर जिसने स्वतंकता की
दिच आरती फेरी।।
यह समाधि, यह लद्यु समाधि है
तिम लीला-स्थली यही है
यही कही पर बिखर गई वह
सन विजय माला-सी
उसके फूल यहाँ संचित है
है वह स्मृति शाला सी।।
सहे वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला सी।
आहुति-सी गिर पड़ी पिता पर
चमक उठी वाला सी।।
बढ़ जाता है मानवीर का
रण में बलि होने से
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से।।
रानी से भी अधिक हमें अब
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिनगारी।।
।
इस कविता में कवि किसकी समाधि की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कर रहा है?
स्वतंत्रता की
ख) झाँसी की रानी की
ग) लक्ष्मीबाई की
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की
लक्ष्मी को मर्दानी क्यों कहा गया होगा?
ख) उसने युद्धस्थल में मर्दानगी दिखाई
घ) वह लीला करती थी
ग)
वह भदों के लिए आदर्श थी
इस कविता में उपमा अलंकार का प्रयोग कहाँ हुआ है?
क) ) भग्न विजय-माला-सी
ख) स्मृति-शाला-सी
ग) ज्वाला-सी
प) उपर्युक्त सभी स्थलों पर
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