पद्यांश की अंतिम चार पंक्तियों का केंद्रिय भाव स्पष्ट कीजिए।
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भिखारी हो कर भी आप सम्राट की तरह रहते हो, घर-घर घूम कर दया दिखाते हैं।
जब स्वर्ण भूमि को रत्न मिला था, तब संसार में सिन हल्की सील
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का यही पालन है कि वह किसी से कुछ नहीं लेता
और हमारी जन्मभूमि भी यही है, और हम जन्मभूमि में ही हैं हम कहीं से आए नहीं
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