पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए!
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कृषक के अभावों की कोई सीमा नहीं है। परंतु वह संतोष रूपी धन के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। पूरे संसार में कैसा भी वसंत आए, कृषक के जीवन में सदैव पतझड़ ही बना रहता है। अर्थात ऋतुएँ बदलती हैं, लोगों की परिस्थितियाँ बदलती हैं, परंतु कृषक के भाग्य में अभाव ही अभाव हैं। ऐसी दयनीय स्थिति के बावजूद उसे किसी से कुछ माँगना अच्छा नहीं लगता। वह हाथ फैलाना नहीं जानता। कृषक को अपनी दीन-हीन दशा पर भी नाज है। मैं ऐसे व्यक्ति पर अभिमान करना चाहता हूँ। कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।
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पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए!
- किसान की कमी की कोई सीमा नहीं है। लेकिन वह संतोष के रूप में पैसों के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। पूरी दुनिया में जो भी बसंत आता है, किसान के जीवन में पतझड़ हमेशा बना रहता है। यानी मौसम बदलते हैं, लोगों के हालात बदलते हैं, लेकिन किसान के भाग्य में कमी होती है। इस श्लोक में राम, रहीम, बुद्ध और जीसस के नाम सामने आए हैं। इनके बारे में कहा गया है कि इनमें से किसी के बताए रास्ते पर भारत की जनता चल सकती है यानी यहां सभी धर्म वालों को समान अधिकार हैं।
- गद्यांश की भाषा 'प्रसादगुण संपन्न' है। अत: सही विकल्प 'प्रसादगुण युक्त' है। ऐसी काव्य रचना, जो पढ़ते ही अर्थ प्राप्त कर लेती है, प्रसाद का गुण मानी जाती है। यानी बिना किसी विशेष प्रयास के जब कविता का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है तो उसमें 'प्रसाद गुण' होता है।
- पद्य में कुल का प्रतीक सारा है। इस मार्ग में चन्द्रमा को बताया गया है और उसकी परिभाषा का वर्णन किया गया है।
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