पद्यांश क्र. १: (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. १)
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शीश नवाऊँ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ।।
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ।।
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ।।
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