पदवी आपि प्रापता मया (वाच्यपरिवर्तन कुरुत)
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संस्कृत वाक्य में क्रिया द्वारा जो कहा जाता है, वही क्रिया का वाच्य होता है। संस्कृत भाषा में तीन वाच्य होते हैं(1) कर्तृवाच्य (2) कर्मवाच्य (3) भाववाच्य।
1. कर्तृवाच्य
कर्तवाच्य में क्रिया द्वारा प्रधान रूप से कर्ता वाच्य होता है तथा कर्ता और क्रिया का पुरुष और वचन समान होते हैं। अकर्मक तथा सकर्मक सभी धातुओं के दसों गणों में, दसों लकारों के रूप कर्तृवाच्य में होते हैं। अकर्मक क्रिया के होने पर कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-रामः हसति (अकर्मक), रामः पुस्तकं पठति (सकर्मक), छात्रा हसन्ति (बहुवचन), यूयं ग्रामं गच्छथ (मध्यम पुरुष, बहुवचन), आवाम् याचावः (उत्तम पुरुष, द्विवचन), बालिका लज्जते (प्रथम पुरुष, एकवचन) इत्यादि वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं के पुरुष और वचन कर्ता के अनुसार हैं। कर्ता में सब जगह प्रथमा विभक्ति तथा कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है। अतः इन क्रियाओं को कर्तृवाच्य की क्रिया कहते हैं।
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