पड़ोस सामाजिक जीवन के ताने-बाने का महत्त्वपूर्ण आधार है। दरअसल पड़ोस जितना स्वाभाविक है, उतना ही सामाजिक सुरक्षा के लिए तथा सामाजिक जीवन की समस्त आनंदपूर्ण गतिविधियों के लिए आवश्यक भी है। पड़ोसी का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता, इसलिए पड़ोसी के साथ कुछ न कुछ सामंजस्य तो बिठाना ही पड़ता है। हमारा पड़ोसी अमीर हो या गरीब, उसके साथ संबंध रखना सदैव हमारे हित में ही होता है। आकस्मिक आपदा व आवश्यकता के समय पड़ोसी ही सबसे अधिक विश्वस्त सहायक हो सकता है। प्रायः जब भी पड़ोसी से खटपट होती है, तो इसलिए कि हम आवश्यकता से अधिक पड़ोसी के व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप करने लगते हैं। पड़ोसी के साथ कभी-कभी तब भी अवरोध पैदा हो जाते हैं जब हम आवश्यकता से अधिक उससे अपेक्षा करने लगते हैं। ध्यान रखना चाहिए कि जब तक बहुत जरूरी न हो, पड़ोसी से कोई चीज माँगने की नौबत ही न आए। आपको परेशानी में पड़ा देख पड़ोसी खुद ही आगे आ जाएगा। क.) पड़ोसी का सामाजिक जीवन में क्या महत्त्व है ? ख.) कैसे कह सकते हैं कि पड़ोसी के साथ सामंजस्य बिठाना हमारे हित में है ? ग.) पड़ोसी से खटपट के प्रायः क्या कारण होते हैं ? घ.) इस गद्यांश को उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
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घ ) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक पड़ोसी है
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