CBSE BOARD X, asked by jeweb5S2nehiyukhinte, 1 year ago

पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे ख़राब'


उपरोक्त पंक्ति का आशय..........रोजगार के रूप में खेलना एवम् पढ़ना .......क्षेत्र में सफलता एवम् परिश्रम का संबंध…….वर्तमान समय की मांग…..निष्कर्ष ।

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Answered by rachanavyas
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पढोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब

खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब


ये पंक्तियां अक्सर बड़े-बुजुर्ग बच्चों से कहते है। शिक्षा वह दीपक है जो न सिर्फ उसे प्रज्वलित करने वाले को रोशन करती है वरन् आस-पास सभी को लाभान्वित करती है। शिक्षा ही सही अर्थों में मनुष्य जीवन को सार्थक करती है। सफलता के लिए नियमित परिश्रम अनिवार्य शर्त है। अब चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या खेल का। संतुलन जीवन की अनिवार्यता है। जो बच्चे सही समय पर पढ़ना और सही समय पर खेलते है; वे चहुँ ओर उच्च परिणाम प्राप्त करते है। सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित रहना और खेलने की उपेक्षा करना हमारे शरीर को कमजोर बना देगा। एक कहावत है 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है' । अगर संतुलित व्यायाम व खेलकूद की उपेक्षा की जाये तो व्याधियाँ घेर लेगी।  

                 
हम जो भी क्षेत्र चुने उसमें पूर्ण परिश्रम व समर्पण से ही सफल हो सकते है। आज क्रिकेट जगत में सचिन तेंदुलकर शतकवीर है। हॉकी में मेजर ध्यानचंद अत्यधिक सफल रहे। प्रत्येक खेल में ऐसे ही विश्वस्तरीय प्रसिद्ध खिलाड़ी है। ये उनके नियमित अभ्यास व कठोर परिश्रम से ही सम्भव हुआ। सचिन ने अल्प शिक्षा ही प्राप्त की पर क्रिकेट केविषय में उनका ज्ञान अवर्णनीय है। कोई भी खिलाड़ी नए कीर्तिमान यूँ ही नही रच देता। उसकी तपस्या, लगन व कड़ा अभ्यास उसे सफल बनाते है। वर्तमान समय में खेलों को लेकर माहौल बदल गया है। आज खेल  जगत  में पैसा, यश और सम्मान सब कुछ है। खिलाडी न सिर्फ खेल से बल्कि अन्य माध्यमों से भी धन और कीर्ति अर्जित कर रहे है।  आज देश में सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, पी वी संधु, दीपा कर्माकर, गीता फोगट सरीखी अनेक महिला खिलाड़ी है जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। न केवल अपने माता-पिता वरन् देश का नआम ऊँचा किया है। ये आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। इन्होंने लीक से हटकर करियर चुना और स्वयं को साबित भी किया। खेल कूद कर खराब बनने की उक्ति अब प्रासंगिक नहीँ रही। बस आवश्यकता इस बात की है जो भी करो पूर्ण निष्ठा और समर्पण से करो और सफल बनो। निष्कर्षतः यही कहना होगा कि एकांगी दृष्टिकोण हमें कमजोर बना देगा अतः सबको अपना लक्ष्य निर्धारित करके सन्तुलन रखते हुए उसे प्राप्त करना चाहिए।  पढाई के साथ खेल का अभ्यास भी हो और अगर खिलाडी बनने की पूर्ण योग्यता हो तो कड़ी मेहनत से उसे निखारना चाहिए।

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