पढ़ाकू क्या पढ़ते थे
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पढ़क्कू की सूझ कविता का सारांश
पढ़क्कू की सूझ कविता का सारांशएक पढ़क्कू व्यक्ति था। वह तर्कशास्त्र पढ़ता था। तेज बहुत था। जहाँ कोई भी बात न होती, वहाँ भी नई बात गढ़ लेता था। एक दिन की बात है। वह चिंता में पड़ गया कि कोल्हू में बैल बिना चलाए कैसे घूमता है। यह बहुत गंभीर विषय बन गया उनके लिए। सोचने लगे कि मालिक ने अवश्य ही उसे कोई तरकीब सिखा दी होगी। आखिरकार उसने मालिक से पूछ ही लिया कि बिना देखे तुम कैसे समझ लेते हो कि कोल्हू का तुम्हारा बैल घूम रहा है या खड़ा हुआ है। मालिक ने जवाब दिया-क्या तुम बैल के गले में बँधी घंटी नहीं देख रहे हो? जबतक यह घंटी बजती रहती है तबतक मुझे कोई चिंता नहीं रहती। लेकिन जैसे ही घंटी से आवाज आनी बंद हो जाती मैं दौड़कर उसकी पूँछ पकड़कर ऐंठ देता हूँ। इसपर पढ़क्कू ने कहा-तुम तो बिल्कुल बेवकूफ जैसी बातें कर रहे हो। ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा बैल खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाता रह जाए। तुम समझोगे कि बैल चल रहा है लेकिन शाम तक एक बूंद तेल भी नहीं निकल पाएगा। मालिक हँसकर पढ़क्कू से बोला-जहाँ से तुमने यह ज्ञान सीखा है वहीं जाकर उसे फैलाओ। यहां पर सब कुछ सही है क्योंकि मेरा बैल अभी तक तर्कशास्त्र नहीं पढ़ पाया है।