Pehla sukh nirogi kaya ka anuched
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नीरोग रहने के लिए क्या करना चाहिए? इसे लोग रहस्यमयी विधा समझते हुए भ्रांतियों में भटकते रहते हैं। वे बहुमूल्य दवाएँ खरीदते हैं, पौष्टिक खाद्य खरीदते हैं और जो भी बनता है करते हैं गुणी योगीजनों से राह पूछते हैं। इतने पर भी सुनिश्चित और चिरस्थायी आरोग्य किसी-किसी के ही हाथ आता है। यह तथ्य विरलों को ही विदित है कि स्वास्थ्य अति सरल है। नीरोग रहने के लिए ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता जो रहस्यमय है। केवल प्रकृति का अनुसरण करने वाले थोड़े से नियमों का पालन करने भर से इस प्रयोजन की पूर्ति बिना किसी कठिनाई के हो जाती है। बीमारी अस्वाभाविक है। इस असंयम की दुष्परिणाम भी कह सकते हैं। यह नियम बहुत नहीं है। थोड़े से ही हैं, जो सर्वविदित है।, सर्वसुलभ हैं, जिनका पालन करने में निभाने में-किसी को भी कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। मूर्खता या उद्दंडता वश मनुष्य इन्हें तोड़ता, बिगाड़ता है तो बीमारी चढ़ दौड़ती है। थोड़ा अपने ऊपर संयम रखा जाय। थोड़ी सावधानी बरती जाय तो बीमार होने का अभिशाप न भुगतना पड़े। यह नियम संयम भी ऐसे नहीं हैं, जिनके लिए योगाभ्यास जैसी कठिन प्रक्रिया रोज ही अपनानी पड़े।
स्वस्थ बने रहने के लिए जिन मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है। वे मात्र पाँच हैं। इन्हें नीरोगता के पंचशील कह सकते हैं।(1) सात्विक भोजन (2)उपयुक्त (3) समय पर गहरी नींद (4) स्वच्छता (50) मन को हलका रखना। इन पाँच नियमों के पालन करने से स्वास्थ्य अक्षुण्ण बना रहता है। यदि किसी कारणवश बिगड़ गया है तो भूल सुधार लेने से प्रकृति क्षमा कर देती है ओर खोया हुआ स्वास्थ्य फिर वापस लौटा देती है।
सात्विक भोजन से तात्पर्य है बिना भूख के कभी न खाना। खाने की मात्रा इतनी सीमित रखनी चाहिए जिसमें आधा पेट आहार से भरे, चौथाई पानी के लिए और चौथाई हवा के लिए खाली रहे। आम तौर से लोग जायके के फेर में पड़कर आवश्यकता से प्रायः दूना खा जाते हैं। पीछे पेट की थैली चौड़ी की गई थैली, जब तक तन नहीं जाती, तब तक ऐसा लगता है मानों हम भूखे हैं। आमाशय आँतें जिगरी से रिसने वाला पाचक रस इतना कम होता है कि औसत खुराक की तुलना में प्रायः आधा ही पच सके। लोगों को यह भ्रम है कि ज्यादा खाया जायगा तो ज्यादा रक्त माँस बनेगा। ज्यादा ताकत आयेगी। लोग यह भूल जाते हैं कि जो पच सके वह अमृत और जो बिना पचा पेट में पड़ा रहे वह विष होता है।
खाने के संबंध में एक और बुरी आदत लोगों में पाई जाती है। जल्दी जल्दी बिना चबाए निगलना। यह भुला दिया जाता है कि जिस प्रकार पेट में पाचक रस निकलता है, उसी प्रकार मुँह के स्राव भी महत्वपूर्ण है। यदि पूरी तह भोजन के ग्रास को चबाया गया है। तो ही वे ठीक तरह पचेंगे अन्यथा दाँतों का काम आंतों को करना पड़ेगा और अपच उत्पन्न होगा।
क्या खाया जाय? इसका उत्तर एक शब्द में यह है कि हमारा खाद्य जीवित हों जीवित का अर्थ है उसे भुना तला न गया हो। यदि मजबूरी हो तो उसे उबाला भर जा सकता है। मिर्च मसाले, नामक, शक्कर की जितनी आवश्यकता है, उतनी फलों में, शाक भाजियों में होती है। ऊपर से जो मिलाया जाता है वह नुकसान के अतिरिक्त और कुछ नहीं करता। अत्र लेना आवश्यक हो तो उसे अंकुरित कर लेना चाहिए। यही जीवित खाद्य की व्याख्या। छिलके हटाकर बनायी दाल तथा बिना बोकर का आटा (मैदा) एक प्रकार से निर्जीव हो जाते हैं। छिलके में बहुमूल्य जीवन तत्व होते हैं। । उन्हें दलने उपराँत, भूनने तलने के बाद एक प्रकार से खाद्य का कोयला ही पेट में जाता तो वह साधारण होते हुए भी मे
Answer:एक सुखमय जीवन को जीने के लिए हमें ७ सुखों की अवक्षकता होती है जिसमे सबसे पहला व प्रमुख सुख – निरोगी काया हैं। अगर हम इस पहले सुख से ही वंचित रहेगे तो दुनिया का कोई भी सुख हमें आनंद नहीं दे पायेगा।
एक अस्वस्थ व्यक्ति का मन, मस्तिष्क, स्वभाव सभी अस्त−व्यस्त रहते है। जहाँ एक निरोगी व्यक्ति अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए रोटी कमाने से लेकर, विद्या अर्जित करने और कला-कौशल क्षेत्र में प्रवेश कर कहीं भी सफलता प्राप्त कर सकता है वहीँ एक रोगी व्यक्ति सभी प्रकार की सुख सुविधायें होते हुए भी उनका उपयोग नहीं कर सकता। इसलिए नीरोग रहना जीवन की प्रथम आवश्यकता मानी गई है। यदि व्यक्ति नीरोग है तो वह अपनी प्रसन्नता बनाये रह सकता है और उसे दूसरों को भी बाँट सकता है।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का विकास होता है इसलिए सदैव निरोगी रहिये व अपने स्वास्थ्य की रक्षा करे।
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