people problems in hindi
essay
Answers
People face many problems in his daily life like noise,travel,war,government etc. They kept problems in their mind and get headache.
।भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।
भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।इससे भारतीय समाज के बाह्य आकार में सामान्य परिवर्तन आने लगा, जो वर्ण-विभाजन में देखा जा सकता है । आगंतुक जातियों को अपने में लीन करनेवाला भारतीय समाज भारत में इसलाम के आते-आते इतना संकुचित हो गया कि उसका एक अंग ‘शूद्र’ या ‘अस्पृश्य’ कहलाया, जिसे आगत इसलाम ने अपने में पचा लिया । यह भारतीय समाज का एक मोड़ कहा जा सकता है ।
भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।इससे भारतीय समाज के बाह्य आकार में सामान्य परिवर्तन आने लगा, जो वर्ण-विभाजन में देखा जा सकता है । आगंतुक जातियों को अपने में लीन करनेवाला भारतीय समाज भारत में इसलाम के आते-आते इतना संकुचित हो गया कि उसका एक अंग ‘शूद्र’ या ‘अस्पृश्य’ कहलाया, जिसे आगत इसलाम ने अपने में पचा लिया । यह भारतीय समाज का एक मोड़ कहा जा सकता है ।वर्ण-व्यवस्था की प्रारंभिक दिशा में सभी वर्णों में रोटी-बेटी का संबंध था । वेदों में विराट् पुरुष के वर्णन-प्रसंग में कहा गया है कि ब्राह्मण उसके मुख, क्षत्रिय उसकी बाँहें, वैश्य उसके मध्य भाग और शूद्र उसके चरण हैं । कर्म के अनुसार यह विभाजन बाद में जन्म के अनुसार होने लगा और अपने ही वर्ण में रोटी-बेटी की कट्टरता दृढ़मूल हो गई तथा अस्पृश्यता एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई ।
भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।इससे भारतीय समाज के बाह्य आकार में सामान्य परिवर्तन आने लगा, जो वर्ण-विभाजन में देखा जा सकता है । आगंतुक जातियों को अपने में लीन करनेवाला भारतीय समाज भारत में इसलाम के आते-आते इतना संकुचित हो गया कि उसका एक अंग ‘शूद्र’ या ‘अस्पृश्य’ कहलाया, जिसे आगत इसलाम ने अपने में पचा लिया । यह भारतीय समाज का एक मोड़ कहा जा सकता है ।वर्ण-व्यवस्था की प्रारंभिक दिशा में सभी वर्णों में रोटी-बेटी का संबंध था । वेदों में विराट् पुरुष के वर्णन-प्रसंग में कहा गया है कि ब्राह्मण उसके मुख, क्षत्रिय उसकी बाँहें, वैश्य उसके मध्य भाग और शूद्र उसके चरण हैं । कर्म के अनुसार यह विभाजन बाद में जन्म के अनुसार होने लगा और अपने ही वर्ण में रोटी-बेटी की कट्टरता दृढ़मूल हो गई तथा अस्पृश्यता एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई ।कालांतर में प्रजातांत्रिक शासन-पद्धतियाँ अस्तित्व में आईं और अब साम्यवादी विचारधारा के अनुसार जातिहीन, वर्गहीन समाज की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है । आज हमारी सामाजिक समस्याओं में जातिवाद, छुआछूत, दहेज, अंधविश्वास, बलात्कार, बाल शोषण, बेगार अशिक्षा आदि समस्याएँ विकराल बनी हुई हैं ।
भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।इससे भारतीय समाज के बाह्य आकार में सामान्य परिवर्तन आने लगा, जो वर्ण-विभाजन में देखा जा सकता है । आगंतुक जातियों को अपने में लीन करनेवाला भारतीय समाज भारत में इसलाम के आते-आते इतना संकुचित हो गया कि उसका एक अंग ‘शूद्र’ या ‘अस्पृश्य’ कहलाया, जिसे आगत इसलाम ने अपने में पचा लिया । यह भारतीय समाज का एक मोड़ कहा जा सकता है ।वर्ण-व्यवस्था की प्रारंभिक दिशा में सभी वर्णों में रोटी-बेटी का संबंध था । वेदों में विराट् पुरुष के वर्णन-प्रसंग में कहा गया है कि ब्राह्मण उसके मुख, क्षत्रिय उसकी बाँहें, वैश्य उसके मध्य भाग और शूद्र उसके चरण हैं । कर्म के अनुसार यह विभाजन बाद में जन्म के अनुसार होने लगा और अपने ही वर्ण में रोटी-बेटी की कट्टरता दृढ़मूल हो गई तथा अस्पृश्यता एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई ।कालांतर में प्रजातांत्रिक शासन-पद्धतियाँ अस्तित्व में आईं और अब साम्यवादी विचारधारा के अनुसार जातिहीन, वर्गहीन समाज की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है । आज हमारी सामाजिक समस्याओं में जातिवाद, छुआछूत, दहेज, अंधविश्वास, बलात्कार, बाल शोषण, बेगार अशिक्षा आदि समस्याएँ विकराल बनी हुई हैं ।जातिवाद हिंदू समाज की कट्टरता की देन है । किसी भी अपराध के कारण एक बार जो जाति से बहिस्कृत होता है, उसके लिए समाज के द्वार सदा के लिए बंद हो जाने से वर्णों में सैकड़ों अवांतर हो गए; अनेक सवर्ण-अवर्ण जातियाँ खड़ी हुईं ।