peyjal ki samasya par nibandh
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दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मँगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से। यहाँ यमुना का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है, साथ ही भू-जल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है। आज पूरे विश्व में पेयजल की कमी का संकट मँडरा रहा है। कहीं यह गिरते भू-जल स्तर के रूप में है तो कहीं नदियों के प्रदूषित पानी के रूप में और कहीं तो सूखते, सिमटते तालाब और झील के रूप में। इसका कारण है, इन स्रोतों से पानी का भारी दोहन किया जाना। पानी के संरक्षित रखने के दर्शन को तो त्याग ही दिया गया है। पूरे विश्व के यूरोप के प्रभाव में आने के बाद से एक ही दर्शन सामने आया कि प्रकृति में जो भी चीजें उपलब्ध हैं उनका सिर्फ दोहन करो। इस दर्शन में संयम का कोई स्थान नहीं है।
आज समूचे यूरोप के 60 प्रतिशत औद्योगिक और शहरी केन्द्र भू-जल के गंभीर संकट की सीमा तक पहुँच गए हैं। पेयजल की गंभीर स्थिति का सामना नेपाल,फिलीपींस, थाइलैण्ड,आस्ट्रेलिया, फिजी और सामोआ जैसे देश भी कर रहे हैं।
पेयजल का प्रत्यक्ष संकट अधिकतर तीसरी दुनिया के देशों में है, क्योंकि भारी कीमत देकर बाहर से जल मँगाने की इनकी आर्थिक स्थिति नहीं है। इन देशों में जहाँ एक तो नगदी फसलों के चक्र में फँसाकर इन देशों के भू-जल का दोहन हुआ, दूसरे विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा भी भू-जल का जमकर दोहन किया गया और इनसे नदियाँ भी प्रदूषित हुईं। पिछली सदी में अफ्रीका को विश्व का फलोद्यान कहा जाता था। परन्तु आज 19 अफ्रीकी देश पेयजल से वंचित हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एक चिंताजनक आँकलन यह भी है कि एक टन मल बहाने के लिए 2000 टन शुद्ध जल बरबाद हो जाता है। शौच के लिए पेयजल की बर्बादी को देखते हुए जाने माने लेखक जोसेफ जैनक्सि समाज को दो रूप में देखते हैं एक तो वह समाज जो अपना मल पीने के पानी से बहाते हैं और दूसरा वह समाज जो मल मिला हुआ पानी पीते हैं।
मनुष्य बिना जल के तीन दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता। पृथ्वी के कई भू-भाग पेय जल के संकट से गुजर रहे हैं। औद्योगीकरण के चलते दुनिया का आधा पेय जल पहले ही पीने के अयोग्य घोषित हो चुका है। भूमण्डल की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी का जल तल 3 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है और इस समय प्रतिवर्ष 160 अरब क्यूबिक मीटर की कमी दर्ज की गई है। बदलता पर्यावरण कई स्थानों को सूखे में तब्दील कर चुका है।
भारत में भी पेयजल का संकट कई तरह से उत्पन्न हो चुका है। दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मँगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से। यहाँ यमुना का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है, साथ ही भू-जल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है। जाड़े में ही यहाँ पानी का ऐसा संकट है कि दिल्ली में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग रोजाना पानी खरीद कर पी रहे हैं।
मुम्बई में तो खारे पानी का ही संकट उत्पन्न हो गया है। भूगर्भीय मीठा पानी लगभग समाप्त होने के कगार पर है। मुम्बई में जमीन की भीतरी बनावट कुछ ऐसी है कि बारिश का पानी एक निर्धारित सीमा तक ही जमीन के भीतर तैरता रहता है, जो प्रसंस्कृत होकर अपने आप पीने योग्य बन जाता है। जबकि ज्यादा गहराई में खारा पानी पाया जाता है। विश्व के सबसे अधिक वर्षा के क्षेत्र चेरापूँजी तक में भी पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया।
अधिकांश शहरों में पेयजल ट्यूबवेल के माध्यम से ही उपलब्ध कराया जाता है। इन ट्यूबवेलों के द्वारा भारी मात्रा में भूमिगत जल को बाहर निकाला जाता है और यह पानी पूरे शहर की पक्की नालियों के द्वारा शहर से बाहर चला जाता है। मतलब यह कि भूमिगत जल के केवल दोहन का ही ध्यान है, घटते जल स्तर की चिंता नहीं। शहरों में जो बड़े और छोटे तालाब थे उन्हें भी भरकर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। ये तालाब भूमिगत जलस्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जल संकट उत्पन्न करने में हरित क्रांति का भी कम योगदान नहीं है। खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों की शुरूवात हुई और जैसे-जैसे खेतों में इनका प्रयोग बढ़ता गया खेतों में सिंचाई की आवश्यकता भी बढ़ती गई, इससे ट्यूबवेलों की संख्या बढ़ी। नतीजा भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे गया। सबसे अधिक अनाज उत्पन्न करने वाले प्रदेश हरियाणा और पंजाब में यह संकट तेजी से बढ़ रहा है। गुजरात में जिन इलाकों में 150 फुट नीचे पानी मिल जाता था, भू-जल के बेहिसाब दोहन के कारण अब 1000 फुट तक बोरिंग करनी पड़ती है। गुजरात और सौराष्ट्र के उन क्षेत्रों में जहाँ सूखा पड़ा था पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा नलकूप सिंचाई के लिए खोदे गए। परम्परागत जल स्रोतों को उपेक्षित छोड़ दिया गया जो आज समाप्त प्राय हैं। ये स्रोत जगह-जगह बारिश के पानी को संग्रहित करते ही थे भूमिगत जल के स्तर को भी बनाए रखते थे।
विकास की प्रतिमान औद्योगिक इकाईंयों ने भी
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पेय जल की समस्या
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पृथ्वी अब कई समस्याओं का सामना कर रही है जैसे कि जलवायु परिवर्तन और सूखे, और इन सभी मानव गतिविधियों का परिणाम है। पानी की कमी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है क्योंकि सुरक्षित पेयजल साल दर साल कम हो रहा है।
पानी के साथ-साथ इंसानों के बिना कुछ भी जीवित नहीं रह सकता है इसलिए स्वच्छ पानी को अभी से कम होने से बचाना आवश्यक है। पीने के पानी की समस्या इन दिनों बहुत गंभीर रूप धारण कर रही है इसके पीछे अनेक कारण है जिनमें हम प्रदुषण, अधिक मांग आदि को शामिल कर सकते हैं। प्रदुषण के कारण नदियों और झीलों का पानी का स्तर कम हो रहा है जिस वजह से पीने के पानी का संकट बढ़ रहा है।
पीनी के पानी के आभाव में लोग दूषित पानी पीने को मजबूर है जिस वजह से लोग बीमार हो रहे हैं। दूषित पानी के कारण कई सारे रोग जैसे पीलिया और अतिसार आदि रोग हो जाते हैं।
इसीलिए हमारे लिए यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि हम पानी का सोच समझ कर उपयोग करें।
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यदि तुम पशु-पक्षियों की बोलियाँ समझ पाते तो
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