Hindi, asked by amruta78, 10 months ago

phasal kavita by sarvesh dayalu sakshena​

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Answered by prashantkanchkatle78
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हल की तरह

कुदाल की तरह

या खुरपी की तरह

पकड़ भी लूँ कलम तो

फिर भी फसल काटने

मिलेगी नहीं हम को ।

हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे

क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे

हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को

सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।

कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी

मेरे ना रहने पर भी

हवा से इठलाएगी

तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी

जिन्होने बीज बोए थे

उन्हीं के चरण परसेगी

काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे

हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे

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