phool aur kate hindi poem bhavarth
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इस कविता में हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने ऊँचे कुल में जन्म लेने का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि मनुष्य का वंश नहीं बल्कि उसके कर्म उसे संसार में प्रसिद्धि दिलाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे इस कविता में फूल और काँटे एक ही पौधे पर लगते हैं लेकिन दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर होता है।
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