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टोपी पाठ प्रवेश
संजय की कहानी “टोपी” एक लोक कथा है। इस कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया है। यह कहानी शासक वर्ग से जनता के सम्बन्धों की समीक्षा करती है। लेखक ने इस कहानी में एक नन्हीं गौरैया के दृढ़ निश्चय और प्रयासों का वर्णन किया है और लेखक के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति नन्ही गौरैया से प्रेरित हो सकता है और अपने जीवन को सफल और अर्थ-पूर्ण बना सकता है। इसमें लेखक ने राजा और उसके मंत्रियों का जनता के ऊपर दबाव को बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया है। एक छोटी गौरैया भी राजा का सच को सभी जनता के सामने ला सकती, यह दिखाया गया है। लेखक ने यह समझाने का प्रयास भी किया है कि सबको उसके काम के बदले उचित मेहनताना मिले, पूरी मजदूरी मिले तो किसी को भी अच्छा काम करने में ख़ुशी मिलेगी और कोई भी अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ ख़ुशी-ख़ुशी करेगा।
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टोपी पाठ की व्याख्या
एक थी गवरइया (गौरैया) और एक था गवरा (नर गौरैया)। दोनों एक दूजे के परम संगी। जहाँ जाते, जब भी जाते साथ ही जाते। साथ हँसते, साथ ही रोते, एक साथ खाते-पीते, एक साथ सोते।
एक दूजे – एक दूसरे
परम संगी – मुख्य साथी
लेखक अपनी कहानी के मुख्य पात्रों का परिचय देते हुए कहते हैं कि एक गवरइया यानी मादा गौरैया थी और एक गवरा यानि नर गौरैया था। दोनों एक-दूसरे के मुख्य साथी थे। वे जहाँ भी जाते, जब भी जाते एक-साथ ही जाते थे। वे एक-साथ ही हँसते थे, एक-साथ ही रोते थे, एक-साथ ही खाते-पीते और एक-साथ ही सोते थे। लेखक कहना चाहते हैं कि वे दोनों एक-दूसरे के बगैर न तो कहीं जाते थे और न ही कोई काम करते थे।
भिनसार होते ही खोंते से निकल पड़ते दाना चुगने और झुटपुटा होते ही खोंते में आ घुसते। थकान मिटाते और सारे दिन के देखे-सुने में हिस्सेदारी बटाते।