pirthiwi pergivan ki uutappati ke wibhinn siddhantho or parikchano ke bare me bataea
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उत्तर :
पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई?
इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए कई वैज्ञानिक वर्षों से जुटे हुए हैं। रसायन शास्त्री अरेनियस ने यह सुझाव दिया था कि जीवन की शुरुआत किसी अन्य ग्रह पर हुई थी और फिर वहां से जीव बीजाणुओं यानी स्पोर्स के रूप में पृथ्वी पर आए। किंतु यह जीवन की उत्पत्ति की नहीं बल्कि इस बात की व्याख्या है कि जीव कैसे फैले।
इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए कई वैज्ञानिक वर्षों से जुटे हुए हैं। रसायन शास्त्री अरेनियस ने यह सुझाव दिया था कि जीवन की शुरुआत किसी अन्य ग्रह पर हुई थी और फिर वहां से जीव बीजाणुओं यानी स्पोर्स के रूप में पृथ्वी पर आए। किंतु यह जीवन की उत्पत्ति की नहीं बल्कि इस बात की व्याख्या है कि जीव कैसे फैले।उन्नीसवीं शताब्दी तक कई लोग यह सोचते थे कि निर्जीव पदार्थों से जीव अपने आप पैदा हो जाते हैं; जैसे गोबर से इल्लियां या कीचड़ से मेंढक बन जाते हैं। किंतु फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने दिखा दिया कि यह संभव नहीं है। केवल एक जीव से ही दूसरा जीव पैदा हो सकता है। 1871 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने सुझाव दिया कि जीवन की शुरुआत संभवत: गुनगुने पानी से भरे एक ऐसे उथले पोखर में हुई होगी जिसमें ‘सब प्रकार के अमोनिया और फॉस्फोरिक लवण होंगे जिन पर प्रकाश, ऊष्मा और विद्युत की क्रिया होती रही होगी।’ इससे एक प्रोटीनयुक्त यौगिक बना होगा जिसमें और परिवर्तन हो कर पहले जीव बने होंगे।
1953 में स्टेनली मिलर नामक विद्यार्थी ने अपने प्रोफेसर यूरी के साथ मिल कर एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने मीथेन, अमोनिया और हाइड्रोजन के मिश्रण में अमीनो अम्लों का निर्माण करवाने में सफलता पाई। इससे ओपारिन के सिद्धांत की पुष्टि हुई। आज इस सिद्धांत को लगभग सभी वैज्ञानिकों के द्वारा मान्य किया जाता है। फिर भी, समय-समय पर नए-नए सिद्धांत प्रस्तुत किए जाते हैं। अलबत्ता, कुछ बातों पर आम सहमति है, जैसे:
1. पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत लगभग 4 अरब वर्ष पहले हुई थी।
2. उस समय के समुद्रों के पानी का संघटन आज के समुद्रों के पानी से बहुत भिन्न था।
3. शुरुआत में पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी, धीरे-धीरे ऑक्सीजन बनती गई और अंतत: वह वर्तमान स्तर तक पहुंची। ऑक्सीजन बनाने का काम हरे पौधे करते हैं जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड ले कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पृथ्वी पर सबसे पहले विकसित होने वाले हरे पौधे सायनोबैक्टीरिया नामक हरे शैवाल थे। अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सबसे पहले बनने वाले जीव ऑक्सीजन की सहायता से श्वसन नहीं करते थे, अपितु अनॉक्सी श्वसन से काम चलाते थे। आजकल के अधिकांश जीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।
3. शुरुआत में पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी, धीरे-धीरे ऑक्सीजन बनती गई और अंतत: वह वर्तमान स्तर तक पहुंची। ऑक्सीजन बनाने का काम हरे पौधे करते हैं जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड ले कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पृथ्वी पर सबसे पहले विकसित होने वाले हरे पौधे सायनोबैक्टीरिया नामक हरे शैवाल थे। अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सबसे पहले बनने वाले जीव ऑक्सीजन की सहायता से श्वसन नहीं करते थे, अपितु अनॉक्सी श्वसन से काम चलाते थे। आजकल के अधिकांश जीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।पृथ्वी पर शुरुआती कार्बनिक अणुओं के निर्माण के पीछे निम्नानुसार तीन प्रकार की शक्तियां काम कर रही होंगी:
1. अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण पराबैंगनी किरणों या आसमानी बिजली की चिंगारियों से संभव हुआ होगा।
1. अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण पराबैंगनी किरणों या आसमानी बिजली की चिंगारियों से संभव हुआ होगा।2. अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिण्डों के साथ जीवाणुओं का आना।
1. अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण पराबैंगनी किरणों या आसमानी बिजली की चिंगारियों से संभव हुआ होगा।2. अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिण्डों के साथ जीवाणुओं का आना।3. उल्का पिण्डों के लगातार गिरने से होने वाले धमाकों की ऊर्जा से कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण।
1. अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण पराबैंगनी किरणों या आसमानी बिजली की चिंगारियों से संभव हुआ होगा।2. अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिण्डों के साथ जीवाणुओं का आना।3. उल्का पिण्डों के लगातार गिरने से होने वाले धमाकों की ऊर्जा से कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण।सवाल यह उठा कि इस सिद्धांत का प्रमाण कैसे जुटाया जाए? तब प्रोफेसर रसल और उनकी टीम ने अपनी प्रयोगशाला में एक अनोखा प्रयोग शु डिग्री किया। उनकी प्रयोगशाला में ये शोधकर्ता उस क्षण को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं जो जीवन के शु डिग्री होने से पहले का क्षण था। समुद्र के पानी से भरे कांच के कई बर्तनों के तलों में लगाई गई सिरिंजेस के द्वारा रसायनों का ऐसा मिश्रण छोड़ा जा रहा है जिसका संघटन लगभग उस क्षारीय द्रव के समान है जो ऊष्णजलीय दरारों से निकलता है। जब ये दोनों द्रव मिलते हैं तब खनिज पदार्थ अवक्षेपित हो जाते हैं और मीनार के समान एक रचना बनाते हैं। प्रोफेसर रसल को ये मीनारें उनकी परिकल्पना के परीक्षण करने का अवसर दे रही हैं। उनका कहना है कि केवल कार्बनिक अणुओं का बनना जीवन के निर्माण का आधार नहीं हो सकता। इन अणुओं का केवल बनना पर्याप्त नहीं है, उनके लिए ऊर्जा के एक स्रोत की भी आवश्यकता होती है और प्रोफेसर रसल सोचते हैं कि इस प्रकार की ऊर्जा ऊष्णजलीय दरारों पर बनी खनिजों की मीनारों से ही प्राप्त हो सकती है।
अगर यह प्रमाणित हो भी जाए कि प्रोफेसर रसल की परिकल्पना सही है, फिर भी यह संभव है कि जीवन की उत्पत्ति विविध परिस्थितियों में और विविध कारणों से हुई हो। यह भी संभव है कि यहां जिन परिकल्पनाओं का विवरण दिया गया है, उनके अतिरिक्त और भी परिकल्पनाएं भविष्य में प्रस्तुत की जाएं |
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