Plane polaroised light by polaroid in hindi
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साधारण प्रकाश की किरण संचरणदिशा के सापेक्ष सममितहोती है, किंतु विशेष अवस्थाओं में उसमें असममिति अथवा एकपक्षीयता का गुण उत्पन्न हो जाता है। यह बात टूरमैलीननामक हरे रंग के प्राकृतिक क्रिस्टल की पट्टिका के द्वारा आसानी से प्रमाणित हो सकती है। जब साधारण प्रकाश इस पट्टिका में होकर निकलता है, तब तो पट्टिका के किरण के अक्ष पर घुमाने से किरण की तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता, किंतु जब टरमैलीन में से निकली हुई यह किरण टूरमैलीन की वैसी ही दूसरी पट्टिका को घुमाने से किरण की तीव्रता में बहुत अधिक परिवर्तन होता है। जब दोनों टूरमैलीनों के अक्ष समांतर होते हैं तब तो तीव्रता अधिकतम होती है। ज्यों-ज्यों इन अक्षों के बीच का कोण बढ़ता जाता है त्यों-त्यों तीव्रता घटती जाती है और जब वह समकोण के बराबर हो जाता है तब तीव्रता का मान शून्य हो जाता है। स्पष्ट है कि प्रथम टूरमैलीन में से निकलने पर प्रकाश में असममिति का ऐसा गुण उत्पन्न हो गया है जो साधारण प्रकाश में नहीं था। इस गुण का नाम "ध्रुवण" है और इस गुणायुक्त प्रकाश को "ध्रुवित" कहते हैं। इस दृष्टि से साधारण प्रकाश "अध्रुवित" कहलाता है।
व्यतिकरण तथा विवर्तन की घटनाओं के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि ध्वनि की तरह ही प्रकाश का संचरण भी तरंगों के रूप में होता है और इस संचरण के लिए माध्यम के रूप में ईथर नामक एक पदार्थ की कल्पना भी कर ली गई है। ध्रुवण की उपर्युक्त घटना यह प्रमाणित करती है कि प्रकाशतरंगें ध्वनितरंगों के समान अनुदैर्ध्य नहीं होती, क्योंकि अनुदैर्घ्य तरंगों में कंपन संचरण की दिशा में होने के कारण उपर्युक्त प्रकार की असममिति संभव नहीं है। अत: प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं, अर्थात् उनके कंपन सितार के तार के कंपनों की तरह तरंगसंचरण से समकोणिक दिशा में होते हैं।
यह आवश्यक नहीं है कि अनुप्रस्थ तरंग में माध्यम के कण का कंपनपथ सरल रेखात्मक ही हो। आवश्यक इतना ही है कि कंपनपथ उस समतल में अवस्थित रहे जिसपर तरंगसंचरण की दिशा अभिलंब रूप हो। अत: इस कंपनपथ की आकृति दीर्घवृत्ताकार तथा विशेष अवस्थाओं में वृत्ताकार भी हो सकती है। जिस तरंग में कंपन की आकृति और यदि कंपन सरल रेखात्मक हो तो उसकी दिशा, अपरिवर्तीं (अर्थात् ध्रुव) रहती है, उसे ध्रुवित तरंग कहते हैं और जिसमें यह आकृति या दिशा बदलती रहती है उसे अध्रुवितकहते हैं।
व्यतिकरण तथा विवर्तन की घटनाओं के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि ध्वनि की तरह ही प्रकाश का संचरण भी तरंगों के रूप में होता है और इस संचरण के लिए माध्यम के रूप में ईथर नामक एक पदार्थ की कल्पना भी कर ली गई है। ध्रुवण की उपर्युक्त घटना यह प्रमाणित करती है कि प्रकाशतरंगें ध्वनितरंगों के समान अनुदैर्ध्य नहीं होती, क्योंकि अनुदैर्घ्य तरंगों में कंपन संचरण की दिशा में होने के कारण उपर्युक्त प्रकार की असममिति संभव नहीं है। अत: प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं, अर्थात् उनके कंपन सितार के तार के कंपनों की तरह तरंगसंचरण से समकोणिक दिशा में होते हैं।
यह आवश्यक नहीं है कि अनुप्रस्थ तरंग में माध्यम के कण का कंपनपथ सरल रेखात्मक ही हो। आवश्यक इतना ही है कि कंपनपथ उस समतल में अवस्थित रहे जिसपर तरंगसंचरण की दिशा अभिलंब रूप हो। अत: इस कंपनपथ की आकृति दीर्घवृत्ताकार तथा विशेष अवस्थाओं में वृत्ताकार भी हो सकती है। जिस तरंग में कंपन की आकृति और यदि कंपन सरल रेखात्मक हो तो उसकी दिशा, अपरिवर्तीं (अर्थात् ध्रुव) रहती है, उसे ध्रुवित तरंग कहते हैं और जिसमें यह आकृति या दिशा बदलती रहती है उसे अध्रुवितकहते हैं।
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