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(क) असाध्य को संभव बनाने का अर्थ है, ऐसे कार्य को करना जिसे पहले किसी ने नही किया हो। कुछ ऐसे कार्य करना जिन्हे करना अब तक अंसभव माना गया हो। ऐसे कार्य जो हमेशा करते आ रहै हैं, उस लीक से अलग हटकर कुछ कार्य करना ही असाध्य को संभव बनाना है।
(ख) मनुष्य ने लोहे के हथियार बनाने के लिए भरपूर परिश्रम किया है। उसने जब बड़े-बड़े विशाल प्राणियों के बड़े-बड़े नखदंतों का सामना किया तो उसने उन प्राणियों से डरकर भागना नहीं चाह बल्कि उसने पत्थरों को काटकर इन प्राणियों के नखदंतों से भी अधिक खतरनाक पत्थर रूपी नख दंत बनाए। फिर उसने पत्थरों को छोड़कर लोहे के हथियार बनाए जो न केवल नखदंत से भी अधिक खतरनाक थे। इस तरह मनुष्य ने लोहे के हथियार बनाने के लिए निरंतर असाध्य को संभव बनाया।
(ग) मनुष्य के भीतर और बाहर की बनावट अलग-अलव प्रकार की है। मनुष्य के भीतर की बनावट में उसका अंतः करण एकदम बाधाहीन बनाया है, जिसके कारण वह किसी भी असंभव कार्य को संभव बनाने का विचार मन में ला सकता है। जबकि मनुष्य को बाहरी रूप से विवस्त्र, निरसत्र और कमजोर बना कर उसके चित्त को आजादी प्रदान की है, जिससे वह असाध्य कार्यों को साध्य बनाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
(घ) इस संसार में जो भी मनुष्येतर प्राणी हैं, उनकी संरचना में प्रकृति के व्यवहार के में साहस का अभाव साफ-साफ रूप से दृष्टिगोचर होता है। इसका आशय है कि प्रकृति ने ने ऐसे प्राणियों को अपने आंचल में समेट कर उन्हें अपने पास ही रखा और उन्हें किसी भी विपत्ति से बचाने के लिये उनकी आंतरिक गतिशीलता को कम कर दिया है।
(ड.) परिश्रम से सफलता और फिर आनंद प्राप्त होता है।
(च) इस गद्यांश का सबसे उचित शीर्षक होगा.....
मनुष्य और कर्मठता