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सालिम अली, सम्मान और किताबों में संकलित विरासत
सालिम अली को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (1958), दिल्ली विश्वविद्यालय (1973), आंध्र विश्वविद्यालय (1978) से मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई थी. वह पहले ब्रिटिश थे जिन्हें ब्रिटिश ऑर्निथोलॉजिस्ट यूनियन के स्वर्ण पदक(1967) से नवाजा गया.
1967 में ही उन्हें 1 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि वाला जे. पॉल गेट्टी वाइल्डलाइफ कंजरवेशन अवॉर्ड भी दिया गया. भारत सरकार ने भी उन्हें 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण पुरस्कारों से नवाजा. 1985 में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत भी किया गया.
सालिम अली लंबे वक्त से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे और जब 1987 में उनका निधन हुआ, उस वक्त 91 वर्ष के थे. सालिम अली के नाम से कई पक्षी विहारों और रिसर्च सेंटर के नाम रखे गये हैं. सालिम अली की लिखी सबसे प्रचलित किताब द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स है.
उनकी सर्वोत्तम कृति डिल्लन रिप्ले के साथ मिलकर लिखी गई उनकी पुस्तक हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान मानी जाती है. जिसके 10 खंड हैं. दोनों ने मिलकर इसे 10 सालों में लिखा. सालिम अली ने कई क्षेत्रीय गाइड भी तैयार की हैं. उनकी आत्मकथा का नाम द फॉल ऑफ स्पैरो है.

सालिम अली होने के मायने
भारत जैसे विकासशील देश में अगर विकास की तकनीकी और मशीनी दौड़ के बीच सालिम अली जैसा संवेदनशील व्यक्ति सरकारों और व्यवस्था को पक्षियों और उनके संरक्षण के लाभ वैज्ञानिक रूप से नहीं समझा पाया होता तो भारत ने अपने कई विशिष्ट पर्यावासों को खो दिया होता.
कई पक्षियों के बारे में परंपरा से चली आ रही मान्यताओं के बारे में भी सालिम अली के अध्ययन ने कई सुधार किये और नई बातें बताईं. इसके अलावा वह सालिम अली ही थे, जिन्होंने प्रवासी पक्षियों के बारे में विस्तृत अध्ययन कर भारत में कच्छ और कुछ अन्य स्थानों को साइबेरिया और मध्य एशियाई पक्षियों के प्रजनन काल का आवास होने की बात का खुलासा किया और देश की इस विशिष्टता पर गर्व करने का अवसर भी दिया.