Hindi, asked by zia94252701, 1 month ago

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Answered by sheetalsharmass63923
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी अपनी कविता शाम एक किसान की इन पंक्तियों में शाम होने के समय प्राकृतिक दृश्य का बड़ा ही मनोरम वर्णन कर रहे हैं। उनके अनुसार, शाम के समय पहाड़ किसी बैठे हुए किसान की तरह दिख रहा है और आसमान उसके सिर पर रखी किसी पगड़ी की तरह दिख रहा है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी, किसान के घुटनों पर रखी किसी चादर जैसी लग रही है। पलाश के पेड़ों पर खिले लाल पुष्प कवि को अंगीठी में जलते अंगारों की तरह दिख रहे हैं। पूर्व में फैलता अंधेरा सिमटकर बैठी भेड़ों की तरह प्रतीत हो रहा है।

पश्चिम दिशा में मौजूद सूरज चिलम पर रखी आग की तरह लग रहा है। चारों तरफ एक मनभावन शांति छाई है।

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