Hindi, asked by pawanyashparmar4, 28 days ago

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Answered by princesahilraj2005
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साबरमती आश्रम की बात है। एक दिन रात को एक चोर आ गया। चोर नासमझ था, नहीं तो आश्रम में चुराने के लिए भला क्या था!

संयोग से कोई आश्रमवासी जग गया उसने धीरे से कुछ और लोगों को जगा दिया। सबने मिलकर चोर को पकड़ लिया और कोठरी में बंद कर दिया।

व्यवस्थापक ने प्रातः यह खबर बापू को दी और चोर को उनके सामने पेश किया। बापू ने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा। वह नौजवान सिर झुकाए आतंकित खड़ा था कि बापू उससे नाराज हैं और हो सकता है कि उसे पुलिस को सौंप दें।

बापू ने जो किया, उसकी तो वह स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता था। बापू ने उससे पूछा, “क्यों तुमने नाश्ता किया?”

कोई उत्तर न मिलने पर उन्होंने व्यवस्थापक की ओर प्रश्नभरी मुद्रा में देखा। व्यवस्थापक ने कहा, “बापू! यह तो चोर है, नाश्ते का सवाल ही कहाँ उठता है।”

बापू का चेहरा गंभीर हो आया। दुःख भरे स्वर में बोले, “क्यों क्या यह इंसान नहीं है? इसे ले जाओ और नाश्ता कराओ।”

व्यवस्थापक, जिसे चोर मानकर लाए थे, वह अब एक क्षण में इन्सान बन गया था। उसकी आँखों में प्रायश्चित के आँसू बह रहे थे।

करुणा ने बुद्ध को बुद्ध बनाया, प्रेम ने महावीर को महावीर बनाया, किंतु करुणा और प्रेम ने गाँधी को बापू बना दिया।

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