Please answer me question no. 3
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संस्कृति मनुष्य की बौद्धिक और नैतिक अवधारणाओं को प्रमाणित ही नहीं करती है, उनका निर्माण भी करती है, लेकिन यह सब कहकर हम विज्ञान की महत्ता को अस्वीकार नहीं कर सकते। यह सब करने की क्षमता उसमें भी उतनी ही है।” इस प्रक्रिया में भाषा और संस्कृति का जो संबंध बनता है वह महत्वपूर्ण है। क्या वे समाज बौद्धिक और नैतिक सिद्ध हुए हैं जिनकी भाषा असमृद्ध मानी गई है? क्या उन समाजों में विज्ञान में प्रगति की है? जो समृद्ध भाषाओं ने अपने-अपने विषयों में की है। इससे स्पष्ट होता है कि विज्ञान की निर्भरता और संस्कृति का विकास भाषा के बिना नहीं हो सकता। किसी समाज की संस्कृति अति रुढ़िवादी हो, देवी-देवता और भूत-प्रेत पर विश्वास करने वाली हो तो वह शिक्षा के माध्यम से सीखे गए वैज्ञानिक रुपों को नकार देगी। कुछ समाज सिद्धांतवादी होने के बाद भी भाषा की असमृद्धता के कारण वैज्ञानिक सिद्धांतो को समझने में असमर्थ होते हैं। इस तरह देखा जाए तो संस्कृति और समाज के विकास में भाषा का स्थान महत्वपूर्ण होता है। ऐसी स्थिति में केवल संस्कृति को ही विकसित करना, या केवल भाषा को ही समृद्ध करना निष्क्रिय कार्य सिद्ध होगा इसके लिए हमें एक विकसित समाज के निर्माण के लिए संस्कृति और भाषा दोनों को समानांतर रुप से विकसित करने की आवश्यकता है। भारतीय परिवेश में दोनों कार्य भिन्न दिशा में हो रहे हैं संस्कृति के विकास के नाम पर संस्कृति को बदला जा रहा है। जबकि संस्कृति के विकास की परिभाषा भिन्न होती है। संस्कृति के विकास की परिभाषा में उसी संस्कृति को विकसित किया जाता है ना की उसे पूर्णत: बदला जाता है। भाषा के संदर्भ में यही हो रहा है, भाषा को समृद्ध करने की बज़ाय एक विकसित भाषा का वर्चस्व निर्माण किया जा रहा है। जिसे विविध भाषाओं की समस्या के नाम पर भाषा की मूल समस्या को दबाया जा रहा है। आज भारतीय परिवेश जिस दिशा में जा रहा है उससे स्पष्ट हो रहा है कि भारतीय परिवेश अपनी मूल संस्कृति से दूर जा रहा है। जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
Shruti9371:
GREAT
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