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सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर
जलधर-निकर विचरते हैं।
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा
वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता
अद्भुत मार्ग मनोहर है।
मनमाने निर्मित नदियों के
पुल से वह अति सुंदर है।
निज कृति का अभिमान व्यर्थ ही
करता अविवेकी नर है !
kavita ka bhavarth likhye / Write the bhavarth of the poem
please don't answer if you don't know, if anyone is going to give silly answers I will report them ....
*Thankyou guys*
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Explanation:
हमारे आस-पास सुंदर और मनमोहक प्रकृति हमें खुश रखती है और स्वस्थ जीवन जीने के लिये एक प्राकृतिक पर्यावरण उपलब्ध कराती है।
रामनरेश त्रिपाठी जी द्वारा रचित ये पंक्तियाँ प्रकृति के हुस्न को बखूबी बयां करती हैं:-
नावें और जहाज नदी नद सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
सिनेमा जगत के पटल पर भी प्रकृति की अनुपम छटा को अनेक गीतों के माध्यम से दर्शाया गया है।आइये सुनते हैं, ऐसे ही कुछ प्रकृति के हुस्न से सराबोर गीत-संगीत:
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