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अपने हित में जीने से हमें वह आनंद प्राप्त नहीं होता है जो जगहित जीने में प्राप्त होता है। स्वयंहित में आनंद की मात्रा निश्चित है जबकि जगहित में प्राप्त आनंद की मात्रा अनंत है
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