Hindi, asked by reetuggn, 7 months ago

please answer the question last ma ha......please
बात 25-30 साल पुरानी है। उन दिनों नेपाल में मेरा हम-वतन प्रीतम लाल पहाइ में खच्चर
लादने का काम करता था। इनका परिवार भी इनके साथ ही पहाड़ में किराये के झाले में रहता
था।
उनका अपने घर नजीबाबाद के पास गाँव में जाने का कार्यक्रम था। अतः ये रास्ते में मेरा घर
होने के कारण मिलने के लिए आये।
औपचारिकतावश चाय नाश्ता बनाया गया।
प्रीतम की लड़की चाय बना कर लाई। परन्तु उसने चाय को बना कर छाना ही नही।
पहले सभी को निथार कर चाय परोसी गई। नीचे बची चाय को उसने अपने छोटे भाई बहनों के
कपों में उडेल दिया।
सभी लोग चाय पीने लगे।
बच्चों ने चाय पीने के बाद चाय पत्ती को भी मजा लेकर खाया।
ये लोग अब बस से जाने की तैयारी में थे कि प्रीतम ने मुझसे कहा कि डॉ. साहब कल से भूखे
हैं। हमें 2-2 रोटी तो खिला ही दो।
मैंने कहा- "जरूर"
श्रीमती ने पराँठे बनाने शुरू किये तो मैंने कहा कि इनके लिए रास्ते के लिए भी पराँठे रख देना।
अब प्रीतम और उसके परिवार ने पराँठे खाने शुरू किये। वो सब इतने भूखे थे कि पेट जल्दी
भरने के चक्कर में दो पराँठे एक साथ हाथ में लेकर डबल-टुकड़े तोड़-तोड़ कर खाने लगे।
उस दिन मैंने देखा कि भूख और निर्धनता क्या होती है।
1. इस कहानी को पढ़कर आपके मन में आए विचार को लिखिए।​

Answers

Answered by rshivangi230
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bhook aur nirdhanta yah To Aise Shabd Hai jinhen Ham kabhi bhi nahin bol sakte hain yah Insan ko kengal kar sakte hain is Kahani se padh kar Hamen yah Pata Chala Ki yadi Koi Bhukha ho aur ke pass paise Na Ho To Hamen uski sahayata ISI Kahani Mein Diye Gaye Pritam Jaise Karni chahie Logon Ko Jab Dekhte Hain To Hamen bahut hi Bura lagta hai ki vah Nirdhan hai aur vah Ki Pyasi idhar udhar bhatak rahe hain lekin Kuchh log Aise hote hain jinhone per Thodi Daya nahin aati hai aur vah unhen Dhoka Deti Hai jabki Hamen Aisa nahin karna chahie

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